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________________ 122 अनेकान्त-57/1-2 विधान करके-कमीवेशी को दूर कर के-उन मंत्रों को फिर से पढ़ा तो तुरन्त ही वे दोनों विद्या-देवियाँ अपने-अपने स्वभाव-रूप में स्थित होकर नजर आने लगीं। तदनन्तर उन मुनियों ने विद्या-सिद्धि का सब हाल पूर्ण विनय के साथ भगवद धरसेन से निवेदन किया। इस पर धरसेन जी ने सन्तुष्ट होकर उन्हें सौम्य तिथि और प्रशस्त नक्षत्र के दिन उस ग्रन्थ का पढ़ाना प्रारम्भ किया, जिसका नाम 'महाकम्मपयडिपाहुड' (महाकर्मप्रकृतिप्राभृत) था। फिर क्रम से उसकी व्याख्या करते हुए (कुछ दिन व्यतीत होने पर) आषाढ़ शुक्ला एकादशी को पूर्वाह्न के समय ग्रन्थ समाप्त किया गया। विनयपूर्वक ग्रन्थ का अध्ययन समाप्त हुआ, इससे सन्तुष्ट होकर भूतों ने वहाँ पर एक मुनि की शंख-तुरही के शब्द सहित पुष्पबलि से महती पूजा की। उसे देखकर धरसेन भट्टारक ने उस मुनि का 'भूतबलि' नाम रक्खा, और दूसरे मुनि का नाम 'पुष्पदन्त' रक्खा, जिसको पूजा के अवसर पर भूतों ने उसकी अस्तव्यस्त रूप से स्थित विषमदन्त-पंक्ति को सम अर्थात् ठीक कर दिया था। फिर उसी नामकरण के दिन धरसेनाचार्य ने उन्हें रुखसत (विदा) कर दिया। गुरुवचन अलंघनीय है, ऐसा विचार कर वे वहाँ से चल दिये और उन्होंने अंकलेश्वर 4 में आकर वर्षाकाल व्यतीत किया। 25 वर्षायोग को समाप्त करके तथा 'जिनपालित' 26 को देखकर पुष्पदन्ताचार्य तो वनवास देश को चले गये और भूतबलि भी द्रमिल (द्राविड) देश को प्रस्थान कर गये। इसके बाद पुष्पदन्ताचार्य ने जिनपालित को दीक्षा देकर, बीस सूत्रों (विंशति प्ररूपणात्मकसूत्रों) की रचना कर और वे सूत्र जिनपालित को पढ़ाकर उसे भगवान् भूतबलि के पास भेजा। भगवान् भूतबलि ने जिनपालित के पास उन विंशतिप्ररूपणात्मक सूत्रों को देखा और साथ ही यह मालूम किया कि जिनपालित अल्पायु है। इससे उन्हें 'महाकर्मप्रकृतिप्रभृत' के व्युच्छेद का विचार उत्पन्न हुआ और तब उन्होंने (उक्त सूत्रों के बाद) 'द्रव्यप्रमाणानुगम' नाम के प्रकरण को आदि में रखकर ग्रन्थ की रचना की। इस ग्रन्थ का नाम ही 'षट्खण्डागम' है; क्योंकि इस आगम ग्रन्थ में 1. जीवस्थान, 2. क्षुल्लकबंध, 3. बन्धस्वामित्वविचय, 4. वेदना, 5. वर्गणा और 6. महाबन्ध नाम के छह खण्ड अर्थात् विभाग हैं, जो सब महाकर्म-प्रकृतिप्राभृत-नामक मूलागम ग्रन्थ
SR No.538057
Book TitleAnekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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