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पचास वर्ष पूर्व
धवलादि-श्रुत-परिचय
- आचार्य पं. जुगलकिशोर मुख्तार 'धवल' और 'जयधवल' नाम से जो सिद्धान्तग्रन्थ प्रसिद्धि को प्राप्त हैं वे वास्तव में कोई मूल-ग्रन्थ नहीं हैं, बल्कि टीका-ग्रन्थ हैं। खुद उनके रचयिता वीरसेनाचार्य ने तथा जिनसेनाचार्य ने उन्हें टीका-ग्रन्थ लिखा है और इन टीकाओं के नाम 'धवला', 'जयधवला' बतलाए हैं, जैसा कि उनके निम्न वाक्यों से प्रकट है
"भट्टारएण टीका लिहिएसा वीरसेणेणा" । 15 । "कत्तियमासे एसा टीका हु समाणिआ धवला" ।।8।। -धवल-प्रशस्ति "इति श्रीवीरसेनीया टीका सूत्रार्थदर्शिनी।" "एकान्नषष्ठिसमधिकसप्तशताब्देषु शकनरेन्द्रस्य। समतीतेषु समाप्ता जयधवला प्राभृतव्याख्या।।" -जयधवल-प्रशस्ति धवल और जयधवल नामों की यह प्रसिद्धि आज की अथवा बहुत ही आधुनिक नहीं है। ब्रह्म हेमचन्द्र अपने प्राकृत श्रुतस्कन्ध में और विक्रम की 10वीं-11वीं शताब्दी के विद्वान् महाकवि पुष्पदन्त अपने महापुराण में भी इन्हीं नामों के साथ इन ग्रन्थों का उल्लेख करते हैं। यथा“सदरीसहस्स धवलो जयधवलो सट्ठिसहसबोधव्यो। महबंधो चालीसं सिद्धंततयं अहं वंदे ।।" -श्रुतस्कन्ध, 88 "ण उ बुझिउ आयमु सद्दधामु। सिद्धंतु धवलु जयधवलु णाम।।" -महापुराण, 1,9,8 इस तरह ये नाम बहुत कुछ पुराने तथा रूढ़ हैं और इनकी सृष्टि टीका