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________________ अनेकान्त-56/1-2 आशय है। अतः इन दोनों आचार्यों के अनुसार पाण्डवपुराणकार ने भी वैसा ही उल्लेख कर सुकुमारिका के साथ विवाह के साथ विवाह के प्रस्ताव से विरक्त होकर जिनदेव के दीक्षित होने तथा जिनदत्त के साथ उसके विवाह होने का उल्लेख किया है (पर्व 24 श्लोक 24-43) इसके अतिरिक्त पाण्डवपुराण मे कुछ ऐसे पद्य भी पाये जाते हैं, जो हरिवंशपुराण के पद्यों से अत्यन्त प्रभावित है। यथा-- ततस्ते दक्षिणान्देशान्विहृत्य हस्तिनं पुरम्। गन्तुं समुद्यताश्चासन् भुज्जन्तो धर्मजंफलम्॥ क्रमान्मार्गवशात्प्रापुर्माकन्दी नगरी नृपाः। स्वः पुरीमिवदेवौघर बुधसीमन्तिनीश्रिताम्॥ पा. पु 15/36-37 विहृत्य विविधान् देशान् दाक्षिणात्यान् महोदयाः। ते हस्तिनापुरं गन्तुं प्रवृत्ता पाण्डुनन्दनाः। प्राप्ता अर्गवशाद् विश्वे भाकन्दी नगरी दिवः। प्रतिच्छन्दस्थितिं दिव्यां दधाना देवविभ्रमाः॥ हरिवंशपुराण 45/119-120 इनके अतिरिक्त निम्नांकित श्लोकों का भी मिलान किया जा सकता हैह. पुं. सर्ग 45-126 127-129 132 135-139 54, 57, 60 पाण्डव पु. प.-15 54 66-68 108 112-116 22, 8-18 सन्दर्भ 1. डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री : सस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान पृ. 114, 2 प. चैनसुखदास एव प. कस्तूरचन्द कासलीवाल के अनुसार, 3. शुद्धवैशाखत्रयोदशत्तिथौ-हरिवंशपुराण (काशी 1962 ई -ज्ञानपीठ सस्करण), 4 श्रावण सिते षष्ठया-उत्तरपुराण. 5 सस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियो का योगदान पृ. 287, 6. पाण्डवपुराण-प्रस्तावना -ले.प. बालचन्द्र शास्त्री पृ. 1-3 जैन मन्दिर के पास. बिजनौर, उ.प्र.
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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