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अनेकान्त-56/1-2
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कथावस्तु का मूल स्रोत जिनसेन प्रथम का हरिवशपुराण है। हरिवशपुराण की प्रद्युम्नचरित सम्बन्धी कथावस्तु और महासेन की कथावस्तु मे बहुत कुछ समानताये हैं। इस पुराण में बताया है कि रुक्मिणी पत्र भेजकर श्री कृष्ण को अपने वरण के लिए बुलती है, जबकि प्रद्युम्नचरित में नारद के अनुरोध पर श्रीकृष्ण रुक्मिणी का अपहरण करने जाते हैं। हरिवंशपुराण मे आया है कि प्रद्युम्न ने कालसवर के शत्रु सिंहरथ नपति को वश में किया था, जिससे प्रसन्न होकर उसने अपने पाँच सौ पुत्रो के रहते हुए भी युवराज पद दिया। प्रद्युम्नचरित मे सामान्यतः सभी शत्रुओ को वश में करने का निर्देश है। इस काव्य में कालसवर ने प्रद्युम्न की प्राप्ति के समय ही अपनी पत्नी कंचनमाला को उसे युवराज पद देने का वचन दिया था। अत:एव उसने प्रतिज्ञानुसार उसे युवराज पद दिया। हरिवशपुराण और प्रद्युम्नचरित दोनो ही ग्रन्थो मे कंचनमाला से गौरी और प्रज्ञप्ति नामक विद्याओ के प्राप्त किये जाने का निर्देश आया है। कालसंवर के पुत्रों ने प्रद्युम्न को विभिन्न स्थानों में परिभ्रमण कराया था, जहाँ से उसे विभिन्न प्रकार के अस्त्र, शस्त्र प्राप्त हुए थे। हरिवशपुराण मे यह सन्दर्भ विस्तृत आया है। कपित्थ और वल्मीक वन के नाम भी इस पुराण में आए हैं, पर प्रद्युम्नचरित में इन वनों का नामोल्लेख नही हुआ है। अतः प्रद्युम्नचरित महाकाव्य के कथानक का बहुभाग हरिवंशपुराण से गृहीत है।
कवि सधारु के हिन्दी प्रद्युम्नचरित की प्रस्तावना मे श्रीमान् प. चैनसुखदास "न्यातीर्थ' व डॉ. कस्तूचन्द कासलीवाल ने प्रद्युम्नचरित सम्बन्धी निम्नलिखित 25 कृतियो का उल्लेख किया है, जो निम्नलिखित हैं - रचना कर्ता
रचनाकाल 1. प्रद्युम्नचरित महासेनाचार्य संस्कृत 11वीं सदी 2. पज्जुण्णकहा सिंह अथवा सिद्ध अपभ्रंश 13वीं शताब्दी 3. प्रद्युम्नचरित कविसधारु हिन्दी सं. 2411 4. प्रद्युम्नचरित भटारक सकलकोर्ति संस्कृत 15वीं शताब्दी 5. प्रद्युम्नचरित्र रइधू
अपभ्रंश 15वीं शताब्दी 6. प्रद्युम्नचरित्र सोमकीर्ति संस्कृत सं. 1530 7. प्रद्युम्नचौपई कमलकेशर हिन्दी सं. 1626 8. प्रद्युम्न रासो ब्रह्मरायमल्ल हिन्दी सं. 1628
भाषा