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________________ आचार्य रविषेण और उनका पद्मपुराण : एक अनुचिन्तन -डॉ. फूलचन्द जैन "प्रेमी" जैनाचार्यो की गौरवशाली परम्परा में आचार्य रविषेण एक ऐसे अनुपम देदीप्यमान नक्षत्र की तरह हैं, जिन्हें ईसा की सातवीं शताब्दी में संस्कृत भाषा के जैन रामकथा विषयक साहित्य मे "पद्मपुराण" अथवा "पद्मचरितं"। नामक एक ऐसी विशाल काव्य कृति लिखने का श्रेय प्राप्त हुआ, जिसे सस्कृत जैन साहित्य की प्रथम (आद्य) रामकथा के रूप में उसी प्रकार विख्यात होने का गौरव प्राप्त हुआ, जिस तरह ईसा की प्रथम शती के प्रारम्भ में आचार्य विमलसूरि कृत 118 अधिकारों और 7651 गाथाओ में प्राकृत भाषा में निबद्ध "पउमचरियं" को प्राकृतभाषा के रामकथा विषयक साहित्य में प्रथम कृति होने का गौरव प्राप्त है। इसीलिए आचार्य रविषेण मात्र जैन साहित्य के ही नही अपितु वे सम्पूर्ण संस्कृत वाड्.मय के एक विशिष्ट गौरवशाली विद्वान् महाकवि थे, जिनका संस्कृत साहित्य, विशेषकर रामकथा-विषयक वाड्.मय के विकास मे अद्वितीय योगदान है। आचार्य रविषेण : व्यक्तित्व रामकथा भारतवर्ष की सबसे अधिक लोकप्रिय कथा है। इसीलिए इसका विपुल साहित्य भी वैदिक, जैन, बौद्ध इन तीनों सम्प्रदायों में अपने-अपने ढंग से लिखा गया है। श्रद्धेय नाथूराम जो प्रेमी ने अपने "जैन साहित्य और इतिहास" नामक ग्रन्थ में 'रामकथा की विभिन्न धाराएं' नामक निबंध में विभिन्न प्रकार की रामकथाओं को स्पष्ट किया है। संस्कृत भाषा में निबद्ध पद्मपुराण के कर्ता आचार्य रविषेण का पौराणिक चरितकाव्य के रचयिता के रूप में भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन्होंने अपनी गुरुपरम्परा का उल्लेख पद्मचरित के 123 वें पर्व के 167 वें पद्य के
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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