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समयसार में 'स्फटिकमणि' का दृष्टान्त
-डॉ. अनेकान्त कुमार जैन आचार्य कुन्दकुन्द के परमागमों में समयसार को प्रथम स्थान प्राप्त है। आत्मा के स्वभाव और उनके गूढ़ रहस्यों का इतना सरल व इतना मार्मिक प्रतिपादन शायद ही कहीं अन्यत्र मिले। समयसार में रहस्य को स्पष्ट करने के लिए आचार्य ने अनेक स्थलों पर दृष्टान्त दिये हैं। इस दृष्टान्तों के प्रयोग इतने अधिक स्पष्ट तरीकों से किये गये हैं कि सिद्धान्त स्वतः स्पष्ट अवगम्य हो जाते हैं। व्यवहारिक जीवन के उदाहरणों को लेकर जिनसे आबाल-गोपाल सभी परिचित होते हैं, किसी गूढ़ रहस्य को समझा देने की कला से ओतप्रोत है समयसार।
यहां हम कर्मोदय जन्य रागादि भावों के प्रति आत्मा के कर्तृत्व और अकर्तृत्व को आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा प्रयोग में लाये गये एक दो उदाहरणों से समझेंगे।
तथ्य
1. आत्मा में कर्मो का जो बन्धन होता है उसका कारण बतलाया जाता
है आत्मा में उत्पन्न होने वाले रागादि भाव। यह तथ्य अपने स्थान पर सही है क्योंकि आत्मा में यदि रागादि भावों की उत्पत्ति न हो तो
उसके कर्मबन्ध का प्रश्न ही नहीं है। 2. · उपर्युक्त कथन सामान्य आत्मा के लिए आया। शुद्ध चैतन्य मात्र जो ____ आत्मा है उससे रागादि भिन्न भी कहे हैं। 3. रागादि आत्मा में कर्मबन्ध के कारण भी हैं और शुद्धचिन्मात्र आत्मा
से भिन्न भी है। समस्या – इस परिस्थिति में रागादि के होने में आत्मा निमित्त कारण है अथवा