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________________ 80 अनेकान्त-56/3-4 'संरक्षणानन्द' अथवा 'विषयानन्दि' या 'विषय - संरक्षणानुबन्धी' भी कहते हैं । धर्मध्यान के भेद (1) अज्ञाविचय धर्म ध्यान - (यह ) आज्ञा + विचय इन दो 'शब्दों' के सयोग से बना है । 'आज्ञा' शब्द से 'आगम' 'सिद्धान्त' और 'जिनवचन' को लिया जाता है । विचय का अर्थ चिन्तन या अभ्यास है 1 ( 2 ) अपायविचय धर्मध्यान- रागादि क्रिया, कषायादिभाव, मिथ्यात्वादि हेतु आस्रव के पांच कार्य, 4 प्रकार की विकथा, 3 प्रकार का गौरव (ऐश्वर्य, सुख, रस - साता), 3 शल्य ( माया शल्य, मिथ्यादर्शनशल्य, निदानशल्य) 22 परीषह (क्षुधा तृषा, शीत- ऊष्ण, दंश-मशक, नग्नत्व, अरति, स्त्री, चर्या, निषद्या शय्या, आक्रोश, वध, याचना, अलाभ, रोग, तृणस्पर्श, जल्ल ( पसीना), सत्कार - पुरस्कार, प्रज्ञा, अज्ञान और अदर्शन) इन सभी उपायों का उपाय सोचना विचारणा ही 'अपायविचय' धर्मध्यान है । (3) विपाकविचय धर्मध्यान- कर्म चार रूप में बध को प्राप्त होते हैंप्रकृतिबंध, स्थितिबंध, रसबध और प्रदेशबध । इनके विपाकोदय का चिन्तन करना 'विपाकविचय धर्मध्यान' है । ( 4 ) संस्थानविचय धर्मध्यान- 'संस्थान' का अर्थ 'संस्थिति', 'अवस्थिति', 'पदार्थो का स्वरूप' है। 'विचय' का अर्थ - चिन्तन अथवा अभ्यास है। इसमें लोक का स्वरूप, आकार, भेद, षट् द्रव्य- उनका स्वरूप, लक्षण, भेद, आधार, स्वभाव, प्रमाण, द्वीप, समुद्र, नदियां आदि लोक में स्थित सभी पदार्थों का, उत्पाद - व्यय, धौव्यादि पर्यायों का चिन्तन किया जाता है 17 धर्मध्यान की चार अनुप्रेक्षा (1) एकत्व - अनुप्रेक्षा - अकेलेपन का चिन्तन करना। जिससे अहंकार का नाश होता है । (2) अनित्य- अनुप्रेक्षा-पदार्थो की अनित्यता का चिन्तन करना । इस भावना के सतत चिन्तन से ममत्व का नाश हो जाता है ।
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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