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________________ अनेकान्त-56/1-2 (1) आगमिक आत्मोपलब्धि (2) मानसिक आत्मोपलब्धि (3) केवलात्मोपलब्धि। गुरु की वाणी में आत्मा का स्वरूप सुनकर उस पर विश्वास ले आना यह आगमिक आत्मोपलब्धि है। आत्मा के शुद्ध-स्वरूप को मन से स्वीकार करना अर्थात् मन को तदनुकूल परिणमा लेना यह मानसिक आत्मोपलब्धि है। (3) केवल ज्ञान हो जाने पर प्रत्यक्षरूप से आत्मा की प्राप्ति यह केवलात्मोपलब्धि है। उनमें से केवलात्मोपलब्धि की बात तो अपूर्व है, वह तो परिणाम स्वरूप एवं ध्येय रूप है ही, परन्तु यहाँ शेष आत्मोपलब्धियों में से मानसिक आत्मोपलब्धि की बात है, जहाँ पर श्रद्धा के साथ आचरण भी तदनुकूल होता है अर्थात् "जैसी करनी वैसी भरनी" की बात है। जहाँ पर श्रद्धा के साथ साथ मानसिक आत्मोपलब्धि के समय स्वयं में भी हर्ष-विषादादि विकारभावों का अभाव होता है, इसलिए वहाँ शुभ या अशुभ किसी प्रकार के नूतन कर्मबन्ध का सद्भाव नहीं होता। अतः व्रती महर्षियों को स्वीकार्य है तथा उसी का इस अध्याय प्रकरण में संग्रहण एवं उसी मानसिक आत्मोपलब्धि वाले को सम्यग्दृष्टि, ज्ञानी, निर्बन्ध आदि रूप से कहा गया है। जहाँ आगमिक आत्मोपलब्धि की बात है, वहाँ पर शुद्धात्मा के विषय का श्रद्धानी होता है किन्तु आचरण तदनुकूल न होकर उससे उल्टा होता है अर्थात् उसे यह विश्वास तो है कि आत्मा का स्वरूप हर्ष-विषादादि करना नहीं है किन्तु स्वयं हर्ष-विषादि को लिए हुए रहता है और करता रहता है। इस प्रकार 'कथनी और करनी और' वाली कहावत को चरितार्थ करने वाला होने से उसे इस अध्यात्म शैली के ग्रन्थ में समयग्दृष्टि आदि न कहकर मिथ्यादृष्टि कहा गया है। आगमिक लोग शुद्धात्मा की श्रद्धामात्र से ही सम्यग्दृष्टिपना मानते हैं क्योकि उनकी विचारधारा यह है कि इसके शुद्धात्मा होने रूप आचरण भले ही आज न सही किन्तु शुद्धात्मा की श्रद्धा तो इसके भी जगी है अतः संग्रहकर्ता के रूप में यह भी सम्यग्दृष्टि ही है। आचार्य श्री ज्ञानसागर महाराज ने शंकास्पद स्थलों को अत्यन्त सरल रूप से स्पष्ट किया है तथा अव्रतरूप प्रवृत्ति करने से पाप बन्ध और व्रतरूप सदवस्था में प्रवृत्ति करने से पुण्यबन्ध का 275 एवं 276 गाथाओं के भाव का स्पष्टीकरण-प्रश्नोत्तर के रूप में किया है।
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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