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अनेकान्त-56/3-4
कनिष्ठ है। इससे कनिष्ठ उत्कृष्ट विकसित (अपभ्रष्ट) रूप हैं, जिसका श्रावक अर्थ लिया जा सकता अर्थ ईषत् (नाम मात्र) वस्त्रधारी है।
अचेलक शब्द नञ् समास में मुनियों को भी प्रयुक्त है।
है।
5. क्षुल्लक दो प्रकार के होते रहे ऐलक एक गृहभोजी ही होते हैं।
हैं- एक गृहभोजी और अनेक गृहभोजी। आजकल एक गृहभोजी
क्षुल्लक ही मिलते हैं। 6. क्षुल्लक पात्र में भोजन करते हैं। ऐलक सर्वदा पाणिपात्र ही होते हैं।
कभी-कभी हाथ में भी कर लेते हैं। 7. क्षुल्लक केशलोंच करते है, पर कैंची ऐलक नियम से केशलोंच ही करते
से भी बाल कटवा सकते हैं। 8. क्षुल्लक के लिए पिच्छिका का ऐलक मयूरपंख की पिच्छिका रखते
नियम नही है।
हैं।
9. ग्यारहवीं प्रतिमाधारी स्त्रियाँ स्त्रियों में ऐलक जैसा कोई भेद नहीं
क्षुल्लिका कहलाती हैं। वे एक है। साडी एवं एक खण्ड वस्त्र रखती हैं तथा पात्र में ही भोजन करती
हैं।
क्षुल्लक और ऐलक दोनों उत्कृष्ट श्रावकों की शेष सब क्रियाएँ समान होती हैं। नैष्ठिक श्रावक की विविधता - ग्यारह प्रतिमाओं में पहली से छठी प्रतिमा तक के धारक श्रावक जघन्य नैष्ठिक, सातवीं से नवमी प्रतिमा तक के धारक श्रावक मध्यम नैष्ठिक तथा दसवीं एवं ग्यारहवीं प्रतिमा के धारक श्रावक उत्कृष्ट नैष्ठिक कहलाते हैं। श्री चामुण्डरायम ने कहा भी है