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________________ 44 करने वाले ग्रन्थों में श्रावक धर्म का प्रतिपादन निम्नलिखित आधारों पर प्राप्त होता है 1. प्रतिमाओं के आधार पर (क) चारित्रपाहुड में आचार्य कुन्दकुन्द (ख) कार्तिकेयानुप्रेक्षा में स्वामी कार्तिकेय (ग) श्रावकाचार में आचार्य वसुनन्दि 2. बारह व्रत एवं सल्लेखना के आधार पर (क) तत्त्वार्थसूत्र में आचार्य उमास्वामी (ख) रत्नकरण्ड श्रावकचार में आचार्य समन्तभद्र अनेकान्त-56/3-4 यद्यपि समन्तभद्राचार्य ने प्रतिमाओं का भी वर्णन किया है, किन्तु उनके श्रावक धर्म प्रतिपादन का आधार बारह व्रत एवं सल्लेखना ही है । ग्यारह प्रतिमाओं का वर्णन तो उन्होंने बाद में किया है, जिनकी संगति बैठाने के लिए ही आचार्य प्रभाचन्द्र ने उत्थानिका में लिखा है- “साम्प्रतं योऽसौ सल्लेखनानुष्ठाता श्रावकस्तस्य कति प्रतिमाः भवन्तीतयाशङ्कयाह ।"" 3. पक्ष, चर्या और साधन के आधार पर (क) महापुराण में पर्व 39 में आचार्य जिनसेन (ख) सागार धर्मामृत में पं. आशाधर - श्रावक के भेद सागार धर्मामृत में श्रावक के तीन भेद किये गये हैं- पाक्षिक, नैष्ठिक और साधक ।" धर्मसंग्रहश्रावकचार आदि में भी श्रावक के इन तीन भेदों को स्वीकार किया गया है। इन तीन भेदों का मूल आधार आचार्य जिनसेन द्वारा कथित पक्ष, चर्या एवं साधन रूप से श्रावक धर्म है। महापुराण में आशंका की गई है कि षट्कर्मजीवी द्विजन्मा जैनी गृहस्थ है, उनके भी हिंसा दोष का प्रसंग होगा ? इसका उत्तर देते हुए कहा गया है कि हॉ होगा, क्योंकि गृहस्थ अल्प सावद्य का भागी तो होता ही है । परन्तु शास्त्र में उसकी शुद्धि भी बतलाई गई है | शुद्धि के तीन प्रकार हैं- पक्ष, चर्या और साधन । समस्त हिंसा का त्याग करना जैनों का पक्ष है। उनका यह पक्ष मैत्री, प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्थ्य रूप चार भावनाओं से वृद्धिंगत होता है । देवता की आराधना
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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