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नैष्ठिक श्रावक : एक अनुचिन्तन
-डॉ. जयकुमार जैन
श्रावक शब्द का अर्थ - श्रावक शब्द का सामान्य अर्थ श्रोता या सुनने वाला है। जो जिनेन्द्र भगवान के वचनों को एवं उनके अनुयायी गुरूओं के उपदेश को श्रद्धापूर्वक सावधानी से सुनता है, वह श्रावक है। कहा भी गया है
"अवाप्तदृष्ट्यादिविशुद्धसम्पत् परं समाचारमनुप्रभातम् । शृणोति यः साधुजनादतन्द्रस्तं श्रावकं प्राहुरमी जिनेन्द्राः ।।"। अर्थात् सम्यग्दर्शन आदि विशद्ध सम्पत्ति को प्राप्त जो व्यक्ति प्रातःकाल से ही साधुजन से उनकी समाचार विधि को आलस्य रहित होकर सुनता है, जिनेन्द्र भगवानों ने उसे श्रावक कहा है। श्रावक शब्द की एक निरुक्ति भी प्राप्त होती है, जिसमें श्र, व और क वर्णो को क्रमशः श्रद्धा, विवेक और क्रिया का प्रतीक मानकर श्रद्धावान् विवेकशील एवं अणुव्रती गृहस्थ को श्रावक कहा गया है। यथा
"श्रन्ति पचन्ति तत्त्वार्थश्रद्धानं निष्ठां नयन्तीति श्राः, तथा वपन्ति गुणवत्सप्तक्षेत्रेषु धनबीजानि निक्षिपन्तीति वाः, तथा किरन्ति क्लिष्टकर्मरजो विक्षिपन्तीति काः, ततः कर्मधारये श्रावका इति भवित।"
अर्थात् श्रावक शब्द में प्रयुक्त 'श्रा' शब्द तत्त्वार्थश्रद्धान की सूचना देता है, 'व' शब्द सप्त धर्म क्षेत्रों में धन रूपी बीजों को बोने की प्रेरणा करता है
और 'क' शबद क्लिष्ट कर्म या महान् पापों को दूर करने की सूचना देता है। इस प्रकार से कर्मधारय समास करने पर निरुक्ति के रूप में श्रावक शब्द निष्पन्न हो जाता है। कुछ विद्वानों ने इसी निरुक्तयर्थ का पल्लवन अधोलिखित श्लोक में इस प्रकार किया है
"श्रद्धालुतां श्राति श्रृणोति शासनं दीने वपेदाशु वृणोति दर्शनम्। कृतत्वपुण्यानि करोति संयमं तं श्रावकं प्राहुरमी विचक्षणः।।"