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________________ 14 अनेकान्त-56/1-2 की अपेक्षा अविरतसम्यग्दृष्टि के भी अनन्तानुबन्धी कषायचतुष्क और मिथ्यात्व जनित रागादि नहीं है अतः उतने अंश में उसके भी निर्जरा है।' आगे कहा है-"अत्र तु ग्रन्थे पञ्चमगुणस्थानादुपरितनगुणस्थानवर्तिनां वीतरागसम्यग्दृष्टीनां मुख्यवृत्त्या ग्रहणं सरागसम्यग्दृष्टीनां गौणवृत्येति व्याख्यानं सम्यग्दृष्टिव्याख्यानकाले सर्वत्र तात्पर्येण ज्ञातव्यम्" इस ग्रन्थ में पञ्चम गुणस्थान से ऊपर के गुणस्थान वाले वीतरागसम्यग्दृष्टियो का ही मुख्य रूप से ग्रहण है, सरागसम्यग्दृष्टियों का तो गौण रूप से ग्रहण है सम्यग्दृष्टि के व्याख्यान के समय सर्वत्र ऐसा ही तात्पर्य समझना चाहिए। उक्त कथनों के आधार पर ही डॉ. ए.एन. उपाध्ये जैसे मनीषी ने यहाँ तक लिखा है "समयसार को गृहस्थो द्वारा पढ़ा जाना तक वर्जित है, क्योंकि ग्रन्थ में भेदविज्ञान जैसे आध्यात्मिक प्रकरण मुख्यतः चर्चित किये गये है, विवेचन शुद्ध निश्चयनय से किया गया है और व्यवहारनय को मात्र सभावनाओ के सुधार हेतु लिखा है। अंतत: निश्चयनय मे दिये गये आध्यात्मिक कथन उन गृहस्थों को सामाजिक और नैतिक रूप से हानिकारक हो सकते है, जो आध्यात्मिक अनुशासन से प्रायः पूर्णत:शून्य है।'' आचार्य जयसेन स्वामी ने समयसार गाथाओ मे वर्णित सम्यग्दृष्टि को वीतरागचारित्र वाला मुनि ही स्वीकार किया है। तात्पर्यवृत्ति में गुणस्थान विवक्षा की प्रधानता है किन्तु आचार्य अमृतचन्द्रसूरि की कहीं भी उपेक्षा न कर उन्हीं का अनुगमन करते हुए प्रायः जयसेनाचार्य लिखते हैं। समयसार गाथा संख्या 306 307 की टीका में श्री अमृतचन्द्रसूरि ने अप्रतिक्रमण आदि को अमृतकुम्भ कहा है, सो तृतीय भूमि में अर्थात् शुद्धोपयोग में कहा है-"तृतीयभूमिस्तु स्वयं शुद्धात्मसिद्धिरूपत्वेन'' अर्थात् अप्रतिक्रमण-प्रतिक्रमण से परे जो अप्रतिक्रमणरूप तृतीय भूमि है, वह स्वयं शुद्धात्मा की सिद्धिरूप है। - इसी प्रकरण में जयसेनाचार्य का कथन भी दृष्टव्य है "सरागचारित्र लक्षण शुभोपयोग की अपेक्षा से ये ही निश्चय प्रतिक्रमण, निश्चय प्रतिसरण आदि कहलायेंगे क्योंकि प्रतिक्रमण आदि शुभोपयोग हैं। ये सब सविकल्प अवस्था में अमृतकुम्भ हैं किन्तु परमपेक्षासंयमरूप निर्विकल्प अवस्था की अपेक्षा
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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