SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त-56/3-4 19 पराजित किया और वहां से "जिन" की प्रतिमा को अपने देश को लौटा लिया, जिसे पहले नन्दराजा अपहरण कर ले गया था। जैन तीर्थकर प्रतिमा निर्माण के विकास क्रम में पटना के निकट लोहनीपुर से प्राप्त एक प्राचीन मस्तकविहीन "जिन" प्रतिमा विशेष रूप से उल्लेखनीय है। जो सर्वप्रथम जायसवाल महोदय ने प्रकाशित की थी इस प्रतिमा का सिर और हाथ खण्डित है। उसके पैर भी जंघा के पास से टूट गये हैं। प्रतिमा का तंग वक्षस्थल जैन तीर्थकरों के तपस्यारत शरीर का नमूना है। इस प्रतिमा पर चमकदार पालिश है। जिससे यह मौर्य कालीन कृति ज्ञात होती है। शताब्दियों तक भू-गर्भ में रहने पर भी इसकी चमक में अन्तर नहीं आया। जो मौर्य कालीन शिल्प की अपनी विशेषता है। शाह महोदय ने इस प्रतिमा को अब तक की प्राप्त तीर्थकरों की प्रतिमाओं में से सबसे प्राचीन प्रतिमा मानी है। ऐसी ही एक मानव मूर्ति हड़प्पा की खुदाई से मिली है। जो पूर्णतः नग्न है। डा. हीरालाल जैन ने आकृति और भावाभिवयञ्जन के आधार पर तुलनात्मक अध्ययन करते हुये बतलाया है कि पटना के लोहनीपुर से प्राप्त मस्तकहीन नग्नमूर्ति और हड़प्पा से प्राप्त मस्तकहीन नग्नमूर्ति में बड़ा ही साम्य है और पूर्वोत्तर परम्परा के आधार से मूर्ति वैदिक व बौद्ध प्रणाली से सर्वथा विसदृश व जैन प्रणाली के पूर्णतया अनुकूल सिद्ध होती हैं। जैन तीर्थकर प्रतिमाओं के स्पष्ट निर्माण का काल ई. शती का आरम्भ है। इस समय से तीर्थकर प्रतिमाओं का प्रमाण मिलने लगता है। यह प्रमाण मथुरा की कला में उपलब्ध होता है। मथुरा जैन धर्म का एक प्रसिद्ध केन्द्र था। यहाँ जैनियों का एक विशाल स्तूप था। जिसके अवशेष कंकाली टीले के रूप में विद्यमान हैं। इस टीले के उत्खनन से स्तूप के अनेक अवशेष मिले है। जिसके “आयागपट्ट" विशेष उल्लेखनीय हैं। आयागपट्ट एक विभूषित शिला होती हैं। जिनके साथ “जिन" की प्रतिमा या कोई अन्य पूज्य आकृति जुड़ी रहती है। जैनियों में ई. सन के पूर्व से ही आयागपट्ट का निर्माण होता था। आरम्भ में इन पटों पर पवित्र चिन्ह बनते थे। परन्तु कुछ समय बाद इसके मध्य में तीर्थकरों की आकृतियाँ उत्कीर्ण की जाने लगी। और इन्हें मन्दिरों में रखा
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy