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________________ अनेकान्त-56/3-4 हैं। वैदिक काल में लोग ऐसे धर्म में विश्वास करते रहे जिसमें प्रतिमा पूजन का कोई स्थान नही था या दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि वैदिक काल में मूर्तियों के लिये ऐसा पदार्थ उपयोग में न लाया जाता हो जिससे वे चिरकाल तक सुरक्षित रहतीं। कुछ विचारकों का कहना है कि वैदिक काल में व्यक्ति प्रतिमा पूजा नहीं करते थे। उनकी उपासना काल्पनिक एवं भावात्मक थी। प्रकृति के सौन्दर्य वैभिन्य एवं काल्पनिक वैचित्रय से अभिभूत प्राणी भय एवं तन्मयता के कारण प्रकृति के विभिन्न रूपों की अमूर्त देवता के रूप में उपासना करने लगा। उनको प्रसन्न करने के लिये यज्ञ का आश्रय लिया गया। जिसमें आहुति देते समय वे उन विशिष्ट देवों के नाम से आहुति डालते थे। डा. बोल्लेन सैन ने बताया है कि वैदिक कालीन व्यक्ति प्रतिमाओ से परिचित ही नही थे वरन् उसकी पूजा भी करते थे। गुप्कालीन मूर्तियां हमें कला, संस्कृति और उस समय के समाज का पूर्ण अनुभव कराती हैं। कुछ संस्कृतियाँ कुछ युगों में अन्य संस्कृतियों और युगों की अपेक्षा कला, धार्मिक, सत्य और नैतिक आदर्शो की वाहिका रहीं हैं। ___ जैन धर्म के प्रर्वतक भगवान महावीर थे, किन्तु जैन परम्परा के अनुसार भगवान महावीर 24वें तीर्थकर हैं। इनके पहले 23 तीर्थकर हो चुके थे जो निम्नवत है :(1) ऋषभनाथ, (2) अजितनाथ, (3) संभवनाथ, (4) अभिनन्दननाथ, (5) सुमतिनाथ, (6) प्रद्मप्रभु, (7) सुपार्श्वनाथ, (8) चन्द्रप्रभु, (9) पुष्पदन्त, (10) शीतलनाथ, (11) श्रेयांसनाथ, (12) वासुपूज्य, (13) विमलनाथ, (14) अनन्तनाथ, (15) धर्मनाथ, (16) शान्तिनाथ, (17) कुथुनाथ, (18) अरनाथ, (19) मल्लिनाथ, (20) मुनि सुव्रतनाथ, (21) नमिनाथ, (22) नेमिनाथ, (23) पार्श्वनाथ ___ जैन तीर्थकर वीतराग कहलाते हैं, इसीलिये उनकी प्रतिमायें ध्यानस्थ रूप में नग्न शरीर से पद्मासन में स्थित होती हैं, उनकी छाती पर श्रीवत्स का चिन्ह होता है। श्वेताम्बर प्रतिमाओं में तीर्थकर को कच्छ पहने हुये दिखाया जाता
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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