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अनेकान्त-56/3-4
9. वही 38/263 “इतिभूयोऽनु शिष्यैतान् प्रजापालन संविधौ। स्वयं च पालयत्येनान् योगक्षेमा नु
चिन्तनैः।" . 10 वही 38/269 “त्वया न्यायधनेनाग भक्तिव्यं प्रजाधृतौ । प्रजा कामदुहा धेर्नुमता न्यायेन योजिता।" 11. वही 38/270, “राजवृतमिदंविद्धि यन्नयायेन धनार्जनम् वर्धन रक्षण चास्य तीर्थ च प्रतिपादनम्" 12. वही 38/271, 272 13 वही 42/138, 139 14. दिवाकर अभिनन्दन ग्रंथ पृ 93, 94 15. वही 16/182, 183, 184, 185, 186 16 वही 16/151, “कोसलादीन महादेशान् साकेतादिपुराणि च। सारामसीमनिगमान खेटादीश्च
न्यवेशयत"। 17. वही 16/152 से 156 18. वही 42/195, 196 “जनक्षयाय संग्रामो बह्वपायो दुरूत्तर तस्मादुपप्रदानाद्यै सधेयोऽरि 42/196 19. वही 42/200, 201, 202 20. वही 42/140, 141 21 वही 42/142 "तीक्ष्ण दण्डोहि नृपतिस्तीव्रमुढेज येतप्रजा । ततोविखत प्रकृति जह्यरेनमभु
प्रजा.। 22. वही 38/279, “समंजसत्वमस्येष्ट प्रजास्वविषमेक्षिता। आनृशस्यमवाग्दण्डापारूप्यादि विशेषितम्। 23 वही 3/214 24 वही 3/215 25. वही 3/216 26. वही 42/164 'प्रसह्य च तथाभूतान वृत्तिच्छेदेन योजयते। कष्टकोद्वरणेनैव प्रजाना क्षेमधारणं"। 27 वही 42/148 तथा नरेन्द्रोऽपि स्वबले व्रणित भद्रम् प्रतिकुयाद् भिषग्वर्यान्नियोऽ-यौषधसदा। 28 वही 42/158, 159, 157, 164 से 168, 150, 151 29 वही 42/121, 122
बी-116, सेठी कॉलोनी, जैन मंदिर मार्ग, जयपुर-302004
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