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________________ " आदिपुराण में राजनीतिक विचारों की अभिव्यञ्जना " - श्रीमती मंजु जैन आदिपुराण जैनागम में प्रथमानुयोग का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ । यह जिनसेनाचार्य की महत्त्वपूर्ण रचना है। इसमे प्रमुखत तीर्थकर ऋषभदेव के जीवन चरित्र का वर्णन है। यद्यपि जिनसेनाचार्य इसे महापुराण का रूप देकर अन्य महापुरूषो के जीवन चरित्र का भी वर्णन करना चाहते थे लेकिन ग्रंथ के रचनाकाल के बीच मे ही वे देवगति को प्राप्त हुए एवं उनके अधूरे कार्य को आचार्य गुणभद्र ने पूरा किया। समुद्र के समान इस गभीर रचना का समय 8-9 वी शताब्दी है। इसमें 17 पर्व है जिसमें प्रारम्भ के 12 पर्व तथा तैतालीसवे पर्व के 3 श्लोक जिनसेनाचार्य द्वारा रचित हैं। शेष पर्व व 1620 श्लोक गुणभद्राचार्य द्वारा रचित हैं। 1 आदिपुराण महापुराण है | स्वय जिनसेनाचार्य के शब्दों में यह प्राचीनकाल से प्रचलित होने से पुराण है। तीर्थकर आदि महापुरुषो का उपदेश एव कल्याणकारी होने से यह महापुराण है। इसमें धर्म है, मुक्ति का पद है, कविता है एव तीर्थकरो का चरित्र है । आदिपुराण संस्कृत साहित्य का एक अनुपम रत्न है। यह पुराण है, महाकाव्य है, धर्मकथा है, धर्मशास्त्र है, राजनीति शास्त्र है, आचार शास्त्र है तथा युग की आद्य व्यवस्था को बतलाने वाला महान इतिहास है। इसमे लगभग सभी विषयों का प्रतिपादन किया गया है 1 आदिपुराण मे भगवत् जिनसेनाचार्य ने राजनीतिक सिद्धांतों की सर्वोत्तम व्याख्या की है। सम्राट भरत छ खण्ड की दिग्विजय के पश्चात् आश्रित राजाओं को जिस राजनीति के पालन का उपदेश देते है एवं ऋषभदेव सम्राट
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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