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________________ 124 अनेकान्त-56/1-2 श्रमण-निर्ग्रन्थों का वहाँ कोई नाम निशान भी न रहा। प्राच्यकालीन अफगानिस्तान, तिब्बत, मंगोलिया, नेपाल एव भूटान के सामाजिक इतिहास के अध्ययन से इसकी अच्छी जानकारी मिल सकती है। इस प्रसंग में मुझे एक दुखद स्मरण आ रहा है। देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद जी (प्रथम राष्ट्रपति) वैशाली में महावीर स्मारक का शिलान्यास कर रहे थे। उसमें अनेक मन्त्रीगण, नेतागण, जैन समाज के प्रतिष्ठित नेतागण, प्रो. डॉ. हीरालाल जी जैन आदि उपस्थित थे। डॉ. हीरालाल जी ने स्मारक के विषय में जो प्राकृत-पद्य लिखे थे, वे उनका पाठ तथा हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत कर रहे थे। सर्वत्र हर्ष का वातावरण था, किन्तु एक सज्जन, जो कि इलाहाबाद विश्व विद्यालय मे वरिष्ठ एव ख्याति प्राप्त प्रोफसर थे, वे अपने एक साथी से कह रहे थे कि जिन नास्तिको को यहाँ से उखाड़ने एव भगाने मे सदियाँ लग गई, अब उन्हे ही फिर से यहाँ बुलाने एवं स्थापित करने के प्रयत्न किये जा रहे हैं। वस्तुतः वे सज्जन स्थानीय ही थे। और उनके ये विचार कुछ समय तक वहाँ चर्चा के विषय भी बने रहे थे। हमारे प्राचीन महामहिम आचार्यो को ग्रन्थ-लेखन के काल में अपने-अपने स्थलो पर जो भी प्रत्यक्ष या परोक्ष जानकारी मिली, उसके आधार पर उन्होंने भगवान महावीर के चरित का चित्रण किया। भले ही उनमे यत्किचित् विभेद रहा हो, फिर भी अधिकांश ने एक मत से उस तथ्य की सूचना अवश्य दी कि भगवान महावीर का जन्म विदेह-देश के कुण्डपुर या कुण्डलपुर में हुआ था, यही सबसे बड़ा एवं सर्वसम्मत प्रमाण भी सिद्ध हो गया, जिसके अनुसार भगवान महावीर का जन्म विदेह में स्थित कुण्डपुर या कुण्डलपुर मे ही हुआ था। अन्यत्र नहीं। फिर भी किसी विशेष दृष्टिकोण से विशेष वर्ग द्वारा इस दीर्घकालीन मान्यता को नकारा जाने लगा है। विदेह-देश की भौगोलिक स्थिति युगों-युगों से सुनिश्चित है और अधिक नहीं, तो भी पिछले लगभग 3 हजार वर्षों से तो वह गंगा नदी के उत्तर में ही स्थित है, जिसके साक्ष्य जैन-जैनेतर सभी साहित्य में उपलब्ध हैं। जब कि गंगा-नदी के दक्षिण में मगध देश स्थित है। इस भूगोल में भी कोई विशेष
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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