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अनेकान्त-56/1-2
फासफोरस की मात्रा बहुत कम होती है, जबकि सब्जियों में कैल्शियम और फासफोरस दोनों खनिज प्रचुर मात्रा में रहते हैं। उदाहरण के लिए सलाद की पत्तियों में किसी भी मांस की तुलना में सत्तर गुना से अधिक कैल्शियम और फासफोरस रहता है।
इसके अतिरिक्त मानवशरीर में पाचन संस्थान से सम्बन्धित अंगों की संरचना ऐसी है कि मासाहार उसके लिए स्वास्थ्यप्रद न होकर स्वास्थ्य को नष्ट करने वाला. अतएव पीड़ादायी ही होगा। उदाहरणार्थ
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2. मांसाहारी जीवो के दांत नुकीले होते है, जिससे वे मांस को खण्ड-खण्ड करके चूर्ण करते हुए खा सकते है। मनुष्य की दाढ़े चपटी होती है, वे मास को चबाकर महीन अर्थात् पाचन- योग्य नही बना सकती। इसलिए मनुष्य के लिए मांस कभी उचित अर्थात् स्वास्थ्यप्रद आहार नहीं हो
सकता।
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मनुष्य के गुर्दे और यकृत (जिगर) मांसाहारी जीवों के गुर्दे और यकृत के अनुपात मे छोटे होते है, इसलिए व्यर्थ मास को बाहर नहीं निकाल पाते। फलतः मनुष्य के लिए मासाहार उपयुक्त नहीं है।
मास को पचाने के लिए पाचन - मस्थान मे हाइड्रोक्लोरिक एसिड की आवश्यकता होती है। मांसाहारी जीवो के पाचक अंगों में वह अपेक्षित मात्रा मे अर्थात् मनुष्य के पाचन संस्थान की अपेक्षा दस गुना अधिक होती है। मनुष्य के पाचन संस्थान में मासाहारी जीवों की तुलना में केवल दशाश अर्थात् 1/10 भाग हाइड्रोक्लोरिक एसिड होने से मास का समुचित पाचन नही हो सकता, इसलिए मासाहार मनुष्य को कभी अपेक्षित स्वास्थ्य नहीं दे सकता, फलतः वह रोग का कारण ही होगा।
मासाहारी प्राणियों की आतो की लम्बाई कम होती है, जिससे मास को सड़ने और विषाक्त होने से पहले ही उसे शरीर से बाहर फेंक देती है। मनुष्य की आंतो की लम्बाई शरीर की लम्बाई से करीब चौगुनी होती है, जिससे वे मांस को जल्दी बाहर नहीं फेंक सकतीं। फलतः आहर के रूप में ग्रहण किया गया मांस शरीर में चिरकाल तक पड़ा रहकर सड़ता