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अनेकान्त - 56/1-2
अधिकांश युवावस्था की पूर्णता पर पहुचते-पहुंचते रक्ताल्पता, मधुमेह और हृदय के रोगों से पीड़ित होकर अपना सुख-चैन खो बैठते हैं। अतः मांसवृद्धि के लिए मांस को आहार बनाना सुख का नहीं, दुःख का कारण बनता है।
जहां तक मनुष्य के लिए आवश्यक प्रोटीन, वसा आदि को प्राप्त करने का प्रश्न है, वह उसे कच्ची या भुनी मूमफली, दालें, फल, ताजा सब्जिया, गेहू, जौ, कुम्हडा (सीताफल) आदि खाने से ही प्राप्त हो जाती है। कुछ सब्जियो में प्रोटीन के साथ स्टार्च का भंडार है, जो शरीर में कार्बोहाइड्रेट की कमी पूरी करता है। पत्ता गोभी में पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन है, सेम, फ्रेंचबीन, सोयबीन तो प्रोटीन और वसा दोनों के भडार हैं। इनके अतिरिक्त ताजी सब्जियों और फलो से शरीर को अनेकानेक खनिजो की भी प्राप्ति होती रहती है, जो उसके लिए आवश्यक है।
इन वनस्पतियो की अपेक्षा मास में प्रोटीन अधिक है, इसे स्वीकार करने पर भी मासाहार की उपयोगिता नही बन पाती। अन्य खनिजों के आवश्यक अनुपात की उपेक्षा करके प्रोटीन अधिक लेने से शरीर कैल्शियम को ग्रहण नहीं कर पाता। फलत: आस्टोवोरोसिस नामक रोग हो जाता है। आज मासाहार सम्पन्न समाज की एक चौथाई महिलाए इस रोग से पीड़ित है। छाती और पेट के कैंसर से होने वाली मौतों की तुलना में कहीं अधिक मौते इस रोग से होती हैं। औषधि के रूप में ऊपर से लिया जाने वाला कैल्शियम भी शरीर मे शोषित नहीं होता। फलत: स्नायु संकेतो के प्रसार, मासपेशियो और हृदय के संकोच - विकास की क्रियाओं के लिए आवश्यक कैल्शियम हड्डियों से खिंचता रहता है। परिणामत: पचास वर्ष की आयु पार करते-करते पजर की हड्डिया पचास प्रतिशत तक घिस जाती हैं। तात्पर्य यह है कि मासाहार से प्राप्त होने वाली प्रोटीन की अधिकता से शरीर में कैल्शियम का क्षरण बहुत अधिक होता है। इसकी तुलना में शाकाहारियों में हड्डियों से कैल्शियम का क्षरण आधे से भी कम होता है।
इस सन्दर्भ में स्मरणीय है कि मानवशरीर कैल्शियम को तब तक ग्रहण नहीं कर पाता, जब तक आहार में फासफोरस न हो। मास, मछली आदि मे