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________________ 112 अनेकान्त-56/1-2 ग्रन्थमालाओं के संचालक बने हुए हैं तो कोई ग्रन्थ छपवाने की चिन्ता में गृहस्थो के घर-घर से चंदा मांगते फिरते हैं। किन्ही के साथ मोटरे चलती है तो किन्हीं के साथ गृहस्थ जैन, कीमती चटाईया और आसन पाटे तथा छोलदारियाँ चलती हैं। त्यागी ब्रह्मचारी लोग अपने लिए आश्रय या उनकी सेवा में लीन रहते है। 'बहती गंगा में हाथ धोने से क्यो चूके' इस भावना से कितने ही विद्वान उनके अनुयायी बन आँख मीच चुप बैठ जाते हैं या हाँ में हाँ मिलाकर गुरूभक्ति का प्रमाण पत्र प्राप्त करने मे सलग्न रहते हैं। ये अपने परिणामों को नही देखते। चारित्र और कषाय का सम्बन्ध प्रकाश और अंधकार जैसा है। जहाँ चारित्र है वहाँ कषाय नहीं और जहाँ कषाय है वहाँ चारित्र नहीं। पर तुलना करने पर बाजे-बाजे व्रतियों की कषाय तो गृहस्थों से कही अधिक निकलती है। कहने का तात्पर्य यह है कि जिस उद्देश्य से चारित्र ग्रहण किया है उस ओर दृष्टिपात कर अपनी प्रवृत्ति को निर्मल बनाओ।। 10. महाराजश्री के अनुसार क्षुल्लक वाहन का उपयोग न करे। रुपयो का त्यागी अभ्यासी वाहन पर कैसे बैठ सकता है? अपनी कषाय की मंदता या तीव्रता देखकर ही कार्य करना चाहिए। सन्दर्भ – मेरी जीवन गाथा-भाग 2 पृष्ठ 230-235 एव जीवन यात्रा पृष्ठ-165 से सग्रहीत
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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