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अनेकान्त-56/1-2
ता कियो सितांबर 2 भेष। तिय' कै तद्भव मोक्ष विशेष। करै केवली कवलाहार। धारै तन मैं रोग अपार॥ 15 ॥ यतिपद वसनधरन । तैं सही। गरभधि वालंवर कै कही। सब भेषनि तैं शिवपद जात। सब घर प्रासुक भोजन खात॥ 16 ।। गर्भ ब्राह्मणी तणें मंझार। पहलैं वीर लयो अवतार। पी, सुरपति जिनकू कारि। धार्यो त्रिशला गर्भ मंझार।।17।।
औरह इत्यादिक बहुभांति। भाषी शंशै मत की पाति। पापबन्ध नै तजिकै प्राण। उपज्यौं यह लै नरक सथान॥18।।
संशय मिथ्यात्व :
मुनिसुव्रत के तीरथ मांहि। क्षीरकदम्ब विप्र शुभ भांहि। ताको सुत है परबत नाम। क्रूर निर्दई अघ' को धाम।।1।। ता. कीनौं मत विपरीत। नाशी सब संयम की रीत। तातें संच्यौ पाप महान। पायो सप्तम नरक सथान।॥20॥
विनय मिथ्यात्व :विनय मिथ्यात धरै सब वेस। धारै जटा मुडावै केश। चोटो राखै नांगे रहै। नाना वेष विनयमत गहै।।21।। दुष्ट होहु अथवा गुणवान। सबकी कीजे भक्ति समान। देव देव सबही है एक। धरिए नाही कछू विवेक॥22॥ वीरनाथ के समय झंझार। मर्वट पूरण साधु विचार। लोक विर्षे अज्ञान मिथ्यात। तानैं भाख्यो नाना भाँति॥ 23।। 8 अज्ञान तै मोक्ष सथान। युक्त जीव कै नांही ज्ञान। फिरि आगमन भ्रमण है नांहि। जीवनि के भव-भव कै मांहि॥ 24।। सब जीवनि को करता एका शून्य ध्यान धारै न विवेक। ऐसैं यह अज्ञान मिथ्यात। म्लेच्छनि मैं है नाना भांति॥ 25॥ जिनमत बाहरि मिथ्या राह। परकट करि लोकनि के माह। गयो निगोद सहै दुख घोर। जन्म मरण को नाही ओर॥ 26।।