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________________ अनेकान्त/55/2 में पड़ता था और वाणिज्यग्रामवाला कोल्लाक इससे भी बहुत दूर। इससे यही मानना तर्कसंगत होगा कि भगवान् ने वैशाली के निकटवर्ती क्षत्रियकुण्ड के ज्ञातखण्ड वन में प्रव्रज्या ली और दूसरे दिन वाणिज्यग्राम के समीपवर्ती कोल्लाक में पारणा की। ___4. क्षत्रियकुण्ड में दीक्षा लेकर भगवान् ने कर्मारग्राम, कोल्लाकसंनिवेश आदि में विचर कर अस्थिकग्राम में वर्षा-चातुर्मास के बाद भी मोराक, वाचाला, कनकखल, आश्रमपद और श्वेताविका आदि स्थानों में विचरण के उपरान्त राजगृह की तरफ प्रवास किया और दूसरा वर्षावास राजगृह में किया था। उक्तविहार-वर्णन में दो मुद्दे ऐसे हैं जो आधुनिक क्षत्रियकुण्ड असली क्षत्रियकुण्ड नहीं है, ऐसा सिद्ध करते हैं। एक तो भगवान् प्रथम चातुर्मास के बाद श्वेताविका नगरी की तरफ जाते हैं और दूसरा यह कि उधर विहार करने के बाद आप गंगानदी उतर कर राजगृह जाते हैं। __ श्वेताविका श्रावस्ती से कपिलवस्तु की तरफ जाते समय मार्ग में पड़ती थी। यह भूमि-प्रदेश कौशल के पूर्वोत्तर में और विदेह के पश्चिम में पड़ता था और वहाँ से राजगृह की तरफ जाते समय बीच में गंगा पार करनी पड़ती थी, यह भी निश्चित है। आधुनिक क्षत्रियकुण्डपुर के आस-पास न तो श्वेताविका नगरी थी और न उधर से राजगृह जाते समय गंगा ही पार करनी पड़ती थी। इससे ज्ञात होता है कि भगवान् की जन्मभूमि आधुनिक क्षत्रियकुण्ड जो आजकल पूर्व बिहार में गिद्धौर स्टेट में और पूर्वकालीन प्रादेशिक सीमानुसार अंग देश में पड़ता है, नहीं हैं, किन्तु गंगा से उत्तर की ओर उत्तर बिहार में कहीं थी और वह स्थान पूर्वोक्त प्रमाणों के अनुसार वैशाली के निकटवर्ती क्षत्रिय-कुण्ड ही हो सकता है। (जैन सिद्धांत भास्कर, 10/2, सन् 1943, पृ. 63-65. उद्धृत - पं. के. भुजबली शास्त्री, भगवान महावीर की जन्मभूमि)। स्व. आचार्य विजयेन्द्रसूरि ने अपनी पुस्तक "वैशाली" में भगवान महावीर के जन्मस्थान के विषय में जो निष्कर्ष निकाले, वे यथावत् रूप में इस प्रकार हैं
SR No.538055
Book TitleAnekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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