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________________ 16 अनेकान्त / 55/2 विभाग रहा होगा। 2. जबकि भगवान ने राजगृह और वैशाली आदि में बहुत से वर्षों में चातुर्मास किए थे, तब क्षत्रियकुण्डपुर में एक भी वर्षाकाल नहीं बिताया। यदि क्षत्रियकुण्डपुर जहाँ आज माना जाता है, वहीं होता तो भगवान के कतिपय वर्षाकाल भी वहाँ अवश्य ही हुए होते, पर ऐसा नहीं हुआ । वर्षावास तो दूर रहा, दीक्षा लेने के बाद कभी क्षत्रियकुण्डपुर अथवा उसके उद्यान में भगवान के आने-जाने का भी कहीं उल्लेख नहीं है। हाँ, प्रारम्भ में जब आप ब्राह्मणकुण्डपुर के बाहर बहुसालचैत्य में पधारे थे, तब क्षत्रियकुण्डपुर के लोगों का आपकी धर्मसभा आने और जमालि के प्रव्रज्या लेने की बात अवश्य आती है। भगवान महावीर बहुधा वहीं अधिक ठहरा करते थे जहाँ पर राजवंश के मनुष्यों का आपकी तरफ सद्भाव रहता। राजगृह - नालंदा में चौदह और वैशाली - वाणिज्यग्राम में बारह वर्षावास होने का यही कारण था कि वहाँ के राजकर्त्ताओं की आपकी तरफ अनन्य भक्ति थी । क्षत्रियकुण्डपुर के राजपुत्र जमाल ने अपनी जाति के पाँच सौ राजपुत्रों के साथ निर्ग्रन्थ प्रव्रज्या ली थी। इससे भी इतना तो सिद्ध होता है कि क्षत्रियकुण्डपुर, जहाँ से कि एक साथ पाँच सौ राजपुत्र निकले थे, कोई बड़ा नगर रहा होगा तब क्या कारण है कि महावीर ने एक वर्षावास अपने जन्मस्थान में नहीं किया? इसका उत्तर यही है कि क्षत्रियकुण्डपुर वैशाली का ही एक उपनगर था और वैशाली - वाणिज्यग्राम में बारह वर्षावास - चातुर्मास हुए ही थे, जिनसे क्षत्रिय कुण्ड और ब्रह ब्राह्मणकुण्ड के निवासियों को भी पर्याप्त लाभ मिल चुका था। इस क्षत्रियकुण्ड में आने अथवा वर्षावास करने सम्बन्धी उल्लेखों का न होना अस्वाभाविक नहीं है। 3. भगवान् की दीक्षा के दूसरे दिन कोल्लाकसंनिवेश में पारणा करने का उल्लेख है। जैन सूत्रों के अनुसार कोल्लाकसंनिवेश दो थे- एक वाणिज्यगांव के निकट और दूसरा राजगृह के समीप । यदि भगवान का जन्मस्थान आजकल का क्षत्रियकुण्ड होता तो दूसरे दिन कोल्लाक में पारणा होना असम्भव था, क्योंकि राजगृहवाला कोल्लाकसंनिवेश वहां से कोई चालीस मील दूर पश्चिम
SR No.538055
Book TitleAnekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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