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अनेकान्त/55/2
-बीरसेन (9 वीं शती ई.) कसायपाहुड (जयधबला), भाग-1, पृ. 76-77.
आषाढ शुक्ल पक्ष षष्ठी के दिन कुण्डलपुर नगर के अधिपति नाथवंशी सिद्धार्थ नरेन्द्र की त्रिशला देवी के गर्भ में आकर और वहाँ आठ दिन अधिक नौ मास रहकर चैत्र शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में गर्भ से बाहर आये।" 21. इह जंबुदीवि भरहंतरालि। रमणीय-विसइ सोहाविसालि।।
कुंडउरि राउ सिद्धत्थ सहित्थु जो सिरिहरु मम्मण वेस रहिउ।।
-महाकवि पुष्पदंत, (10 वीं शती ई.) वीरजिणिंदचरिउ, 1/6, पृ. 10. "इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में विशाल शोभाधारी विदेह प्रदेश में कुण्डपुर नगर के राजा सिद्धार्थ राज्य करते हैं। वे आत्म-हितैषी और श्रीधर होते हुए भी विष्णु के समान वामनावतार सम्बधी याचक वेष से रहित हैं।"
उक्त शास्त्रीय उद्धरणों से स्पष्ट है कि भगवान महावीर का जन्म विदेह देश के "कुण्डपुर" (कुण्डलपुर या कुण्डग्राम) में हुआ था, जो आज "वासोकुण्ड" नाम से जाना जाता है। महावीर का जन्मस्थान होने के कारण ही यहाँ सन् 1955 ई. में बिहार सरकार ने (स्व. साहू शान्तिप्रसाद जैन के आर्थिक सहयोग से) प्राकृत और जैनविद्या के उच्चतर अध्ययन-अनुसन्धान के निमित्त “प्राकृत जैनशास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान, वैशाली" की स्थापना की थी। संस्थान के भवन तथा जन्म स्थान वासोकुण्ड में महावीर स्मारक का शिलान्यास 23 अप्रैल 1956 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने किया था।
देश-विदेश के जैन-जैनेतर विद्वानों ने पिछले एक-डेढ़ सौ वर्षों में भगवान् महावीर के जन्म स्थान के विषय में खूब विचार किया है। उनमें से कतिपय विद्वानों का ससन्दर्भ उल्लेख यहाँ किया जा रहा है-------- विदेशी-विद्वान् 1. हर्मन जैकोबी, सेक्रेड बुक्स ऑफ दि ईस्ट, जिल्द-22, ऑक्सफोर्ड, 1884; एवं भारत-1964, पृ.
10-13 (जैन सूत्र, प्रथम भाग की भूमिका) तथा इन्सायक्लोपीडिया ऑफ रिलीजन एण्ड एथिक्स, जिल्द-7 पृ. 466.