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________________ अहिंसा की व्यावहारिकता -डॉ. श्रेयांसकुमार जैन मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अहिंसा का महत्त्व है। चाहे वह वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक हो, सभी में अहिंसा की विशेषता रहती है और बार बार इसके प्रयोग के अवसर उपस्थित होते हैं। यथा गंगा नदी की प्रत्येक लहर में जल व्याप्त है, उसी प्रकार मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अहिंसा व्याप्त होती है। इसके बिना मानव का एक दिन भी कार्य नहीं चल सकता है और न चला है। जहाँ भी कोई पारिवारिक समस्या उपस्थित हुई, सामाजिक आपत्तियाँ आना शुरु हुई, धार्मिक विवाद खड़े हुए, आर्थिक उलझन आ पड़ी राजनैतिक संघर्ष की आहट हुई- सभी के समाधान के लिए मनुष्य को अहिंसा की ही शरण लेनी पड़ती है। क्योंकि अहिंसा ही सर्वश्रेष्ठ है, वही जीवन का सर्वस्व है। इसीलिए अहिंसा का गुणगान करते हुए कहा हैमातेव सर्वभूतानामहिंसा हितकारिणी, अहिंसैव हि संसारमरावमृतसारणिः। अहिंसा दुःखदावाग्नि प्रावष्षेण्य घनावली, भवभ्रमिरुगार्तानामहिंसा परमौषधीः॥ __-योगशास्त्र प्रकाश 2 श्लोक 50-59 -अहिंसा माता के समान सभी प्राणियों का हित करने वाली है। अहिंसा संसाररूपी मरुस्थली में समस्त प्राणियों का हित करने वाली है। अहिंसा संसाररूपी मरुस्थली में अमृत की नदी है। अहिंसा दुःखरूपी दावानल को विनष्ट करने के लिए वर्षाकालीन मेघों की घनघोर घटा है। अहिंसा भवभ्रमणरूपी रोग से पीडित जनों के लिए उत्तम औषध है। "अत्ता चेव अहिंसा" अर्थात आत्मा ही अहिंसा है। आचार्य श्री समन्तभद्र ने कहा है कि "अहिंसा सम्पूर्ण जगत् में सद्भावना, सहृदयता, सहानुभूति, जनसेवा और दया का संदेश देकर प्राणिमात्र के लिए प्रकट रूप में परमब्रह्म है।"। वैदिक परम्परा में इसे परमधर्म कहा है। यह धर्म का प्राण है इसके बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा जा सकता है।
SR No.538055
Book TitleAnekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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