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________________ अनेकान्त/55/1 41 पुरातात्त्विक, भाषा-वैज्ञानिक एवं प्राचीन साहित्य के अध्ययन - अनुशीलन से व्रात्य, श्रमण या अर्हत संस्कृति से द्रविड़, असुर, राक्षस, म्लेच्छ, दास, नाग आदि प्रसिद्ध अनार्य जातियों के भली-भांति जुड़े होने के प्रमाण मिले हैं। वैष्णव परंपरा के महान् ग्रंथ श्री मद् भागवत् के पाँचवे स्कन्ध में महर्षि शुकदेव ने ऋषभदेव की देशकालातीत महिमा का गुणगान इन शब्दों में किया है : "भगवान परमर्षिभिः प्रसादितो नामः प्रियचिकीर्षया तदवरोधायने मेरूदेव्यां धर्मान् दर्शायतुकामो वातरशनानां श्रमणानामृषीणामूर्ध्वमन्थिनां शुक्लया तनुवावतार " 5/3/20 अर्थात् महर्षियों द्वारा प्रसन्न किये जाने पर श्री विष्णु महाराज नाभि का प्रिय करने के लिये उनके अंत:पुर में मेरूदेवी (मरूदेवी) के गर्भ से ऊर्ध्वरेता, वातरशन नग्न श्रमण ऋषियों का धर्म संकट प्रकट करने के लिये शुक्ल अर्थात् शुद्ध निर्मल सत्वमय विग्रह से प्रकट हुए। पहले जैन तीर्थंकर का ऋषभ नामकरण, उनके राज्य का नामकरण अजनाभ होना फिर बदल कर भारत होना क्रमश: पाँचवें स्कन्ध से ही 4/2, 4/2 एवं 4/9 में स्पष्टतया वर्णित है। 15 अंत में यदि पुराणों और ग्रंथों में लिखी गई पंक्तियों में उनके लेखकों / रचताओ की मूलभूत विचारधारा और विषय वस्तु को खोजा जाये तो सत्य ही सामने आता है। सत्य तो दिगम्बर ही होता है। लेखन में अतिशयोक्ति व काल्पनिक अवधारणा रूपी आवरण का उपयोग तथ्य को सत्य से दूर ले जाता है। पुन: - पुनः आवश्यकता है- श्रमण संस्कृति के प्राचीनतम उपलब्ध शिलालेखों व लिपियों की पूर्वाग्रहरहित समीक्षा की। संदर्भ सूची 1. प्रोफेसर एल. सी. जैन (1) हीनाक्षरी और घनाक्षरी का रहस्य, अर्हत - वचन, वर्ष-1(2), 11-16, 1998. ( 2 ) ब्राम्ही लिपि का अविष्कार एवं आचार्य भद्रबाहु मुनिसंघ ( अर्हत वचन 2 ( 2 ), 17-26) एवं 2 (3) 1-12, 1290. 93) क्या सम्राट चन्द्र - गुप्त दक्षिण भारत में मुनि रूप में :
SR No.538055
Book TitleAnekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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