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________________ 28 मुनिराज ससंघ आमेर में हीरालाल संगही की विख्यात हवेली पर आये और उसे मन्दिर समझ कर पैर धोकर अंदर प्रवेश किया। संध्या हो चली थी अतः मुनिराज वहीं सामायिक में बैठ गये। प्रातः वहां से उठकर मन्दिर जाकर दर्शन किये। 1008 भगवान नेमिनाथ - श्यामप्रभु (सांवला जी ) के दर्शनकर अति प्रसन्न मुनिराजों ने वहीं सामायिक की । अनेकान्त - 55/4 नोट 'आमेर में सांवलाजी के मन्दिर के पहिले मार्ग में संगही हीरालाल जी की हवेली आज भी विद्यमान है, जिसके सामने तीन उत्तुंग शिखर वाला दिगम्बर जैन मन्दिर संगही जी का है जिसमें व्यास की गरदी में शिव पिंडी पधरा कर भ्रष्ट किया गया है। अब यह मन्दिर पुरातत्त्व विभाग की संपत्ति है।" - " विरधीचन्द संगही ने हवेली में चौका लगाया तथा जयपुर से एक जैन - अग्रवाल बंधु ने भी पहुंच कर चौका लगाया । अग्रवाल बंधु ने मुनिराज को आहार देकर ही अन्न-जल ग्रहण करने की प्रतिज्ञा ले रखी थी। मुनिराज शुद्धि करके जिनप्रतिमा के चरण स्पर्श कर आहार के लिये निकले तो विरधीचन्द संगही ने सरपर कलश रखकर पड़गाहा तथा नवधा भक्ति पूर्वक वृषभसेन मुनिराज को आहार कराया। बाहुबलि मुनिराज का आहार भी निरंतराय अग्रवाल बंधु के यहां हुआ। मुनिराज आहार लेकर बाहर निकले तो अपार दर्शनार्थियों की भीड़ थी। दर्शन देकर अंबावती (आमेर) ग्राम की ओर बिहार किया। साईवाड़ पहुंचकर सामायिक की तथा साथ में जा रहे जन समूह को वापस जाने को कहा। मिती माघ शुक्ला नवमी शुक्रवार को प्रातः सामायिक से उठकर लोगों को दर्शन दिये। साईवाड़ ग्रामवासियों ने मुनिराज के दर्शन कर मंगल-गीत पद विनती आदि गाये। मुनिराज का सभी ने प्रवचन सुना । साईवाड़ में मुनियों को आहार देने के लिये भवानीराम चौधरी सपत्नी पहुँचे। पत्नी चौधरायण ने मुनियों को आहार देकर अन्नजल ग्रहण करने की
SR No.538055
Book TitleAnekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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