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________________ अनेकान्त-55/4 मुनिराज जयपुर में कहाँ से आये यह सूचना उपलब्ध नहीं है। संघ में दो मुनिराज वृषभसेन तथ बाहुबलि जी थे। वृषभसेन मुनिराज का आहार बैद संगही हीरालाल के यहां तथा बाहुबलि मुनिराज का आहारघासीराम खिन्दूका के यहाँ हुआ। दोनों ही समाज के प्रमुख व्यक्ति थे। “बखत हुई जब आहार की जयपुर मांही आय, बैद संगही हीरालाल के वृषभसेन मुनि पाय''।। 97 ।। खिन्दूका घासीराम के पूर्व कही जिहिं चाल बाहुबलजी लेयके कर-पातर में ग्रासा।। 98 ।। आहार लेकर दोनों मुनिराज रामगंज की चौपड (कुण्ड) पर होकर रास्ते में दिगम्बर जैन मन्दिर पाटनियां (दूढियों) के दर्शन करते हुए वापस मोहन बाड़ी गये। दिन में जनता को धर्मापदेश दिया तथा संध्या की सामायिक में बैठ गये। दूसरे दिन माघ शु. 7 बुधवार को प्रातः धर्मोपदेश देकर आहार के निमित्त जयपुर नगर में आये तथा श्योलालजी बख्शी के वृषभसेन जी तथा सरुपचन्द खिन्दूका (पाटनी) के यहाँ बाहुबलि मुनिराज का आहार हुआ। __ आहार के पश्चात् जयपुर नगर के सबसे प्राचीन एवं प्रसिद्ध गंगापोल दरवाजे से होकर बास बदनपुरा की प्रसिद्ध जैन नसिया गये। संवत् 1880 से 1890 के बीच निर्मित्त संगही जी की नसियां, हुकमचन्द बज की नसियां तथा नन्दलाल (छाबड़ा) झालरावाली नसियां के दर्शन किये धर्मोपदेश दिया तथा वहां से बिहार कर मानसागर बांध (जलमहल) की पाल से बांध की घाटी से पन्नामियां की सराय होकर आमेर के बाहर दिगम्बर जैन नसियां कार्तिस्तम्भ पहुँचे। यहां आमेर गद्दी के भटारकों की समाधियां तथा विं सं. 4 से लेकर 1882 तक के मूलसंघ के भट्टारकों का ऐतिहासिक स्तंभ है। समाज के सुप्रतिष्ठित व्यक्ति श्री विरधीचन्द संगही मालावत नसिया दर्शनार्थ गये तथा सम्मान पूर्वक आमेर नगर में मंगल प्रवेश कराया। जयपुर से पूर्व आमेर राजधानी थी।
SR No.538055
Book TitleAnekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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