SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त-55/4 द्वारा अग्नि का अनुमान करते हैं। तब साधक-हेतु मिलने पर अमुक देश में उसकी विधि और बाधक-हेतु मिलने पर उसका निषेध करते हैं किन्तु स्याद्वाद का विधि-निषेध वस्तु के देश-काल से संबद्ध नहीं है। यह उसके स्वरूप-निर्धारण से संबद्ध है। अग्नि जब कभी और जहां कहीं भी होती है वह अपने स्वरूप से होती है, इसलिये उसकी विधि उसके घटकों पर निर्भर है और उसका निषेध उन तत्वों पर निर्भर है जो उसके घटक नहीं हैं। वस्तु में विधि-पर्याय होता है इसलिये वह अपने स्वरूप में रहती है और निषेध-पर्याय होता है, इसलिये उसका स्वरूप दूसरों से आक्रान्त नहीं होता। यही वस्तु का वस्तुत्व है। इस स्वरूपगत विशेषता की सूचना 'स्यात्' शब्द देता है। विभज्यवाद' भजनावाद', स्याद्वाद के नामान्तर हैं। भगवान महावीर ने स्वयं भी अनेक प्रश्नों के उत्तर विभज्यवाद की पद्धति से दिये हैं। जयन्ती ने पूछा-'भंते! सोना अच्छा है या जागना अच्छा है? महावीर ने कहा 'जयन्ती! कुछ जीवों का सोना अच्छा है और कुछ जीवों का जागना अच्छा है।'' जयन्ती ने पुनः प्रश्न किया- भंते! यह कैसे? महावीर का उत्तर था-'जो जीव अधर्मी हैं उनका सोना अच्छा है और जो धर्मी हैं, उनका जागना ही अच्छा है, यह एकांगी उत्तर होता। इसलिये महावीर ने प्रश्न का उत्तर विभाग करके दिया, एकांगी दृष्टि से नहीं दिया। भजनावाद के अनुसार द्रव्य और गुण के भेद एवं अभेद का एकांगी नियम स्वीकार्य नहीं। उसमें भेद और अभेद दोनों हैं। द्रव्य से गुण अभिन्न हैं, यदि इस नियम को स्वीकृति दी जाये, तो द्रव्य और गुण दो नहीं रहते, एक हो जाते हैं। फिर 'द्रव्य में 'गुण'-इस प्रकार की वाक्य-रचना संभव नहीं। द्रव्य से गुण भिन्न हैं, यदि इस नियम को माना जाये, तो 'यह गुण इस द्रव्य का है'-इस प्रकार की वाक्य-रचना नहीं की जा सकती। वस्तु स्वभावतः अनेक धर्मात्मक है। जो वस्तु मधुर प्रतीत होती है, वह कटु भी है, जो मृदु प्रतीत होती है, वह कठोर भी है। जो दीपक क्षण-क्षण बुझता और टिमटिमाता दिखाई पड़ता है, उसमें एकांत क्षणिकता ही नहीं, द्रव्यरूप से स्थिरता भी है। 'जो द्वन्द्व (युगल) विरोधी प्रतीत होते हैं, उनमें
SR No.538055
Book TitleAnekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy