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अनेकान्त/55/3
पाँचो अणुव्रत मानव, समाज, राष्ट्र एवं विश्व के नैतिक उत्थान के लिए परम आवश्यक हैं। आज के सन्दर्भ में अणुव्रतों के सामयिक प्रयोग की महती आवश्कता है। यही व्यक्तित्व निर्माण की आधारभूमि है।
सन्दर्भ :
1. सागारधर्मामृत 1/15 की स्वोपज्ञ टीका, 2. अभिधानराजेन्द्र कोष, भाग 7 पृष्ठ 779, 3. गच्छाचारपयन्ना टीका, द्वितीय अधिकार, 4. स्थानाइ.सूत्र, ठागा 4 उद्देश 4, 5. सागरधर्मामृत, 7/38-39, 6. आदिपुराण, 39/149, 7. मद्यमांसमधुत्यागै: सहाणुव्रतपञ्चकम्। अष्टौ मूलगुणानामुहिणां श्रमणोत्तमः।। -रत्नकरण्डश्रावकाचार, 66, 8. हिंसासत्यास्तेयादब्रहनपरिग्रहाच्च बादरभेदात्।।
द्यूतान्मांसान्मधाद्विरतिगृहिणोऽष्ट सन्त्यमी मलगुणाः।। (चारित्रसार में उद्धृत) 9. मद्यं मांसं क्षौदं पञ्चोदुम्बरफलानि यत्नेन।
हिंसाव्यपरतिकामैर्माक्तव्यानि प्रथममेव।। परुषार्थसिद्धि.61 10. मद्यपलमधुनिशाशनपञ्चफलीविरतिपञ्चकाप्तनती।
जीवदयाजलगालनमिति च क्वचिदष्टमूलगुणाः।।
-सागारधर्मामृत, अध्याय 2 11. समीचीन धर्मशास्त्र, प्रस्तावना पृ. 59, 12. 'व्रतमभिसन्धिकृतो नियमः, इदं कर्तव्यमिदं न कर्तव्यमिति वा' -सर्वार्थसिद्धि, 7/1 13. संकल्पपूर्वकः सेव्ये नियमोऽशुभकर्मणः।
निवृत्तिर्वा व्रतं स्याद्वा प्रवृत्तिः शुभकर्मणि।।
-सागारधर्मामृत, 2/80 14. 'एभिश्च दिग्व्रतादिभिरुत्तरव्रतैः सम्पन्नोऽगारी व्रती भवति।'
-'अणुव्रतोऽगारी' सूत्र का तत्त्वार्थाधिगम भाष्य 15. सर्वार्थसिद्धि, 7/20 16. अणनि लघुनि व्रतानि अणुव्रतानि। लघुत्वं च महाव्रतोपक्षया अल्पविषयत्वादिनेति प्रतीतमेवेति। उक्तंच
सव्वगयं सम्मत्तं सुए चरित्तेन फज्जया सव्वे। देसविरई पमुच्च दोण्ह वि पार्डसेवणं कुज्जा।। अथवा सर्वविरतापेक्षयाऽणोर्लघोर्गुणिनो व्रतानि अणुव्रतानि।
-अभिधानराजेन्द्र कोष, भाग । पृष्ठ 416 17. चारित्रसार, 13/3, 18. श्रावकाचारसंग्रह, भाग 4 भूमिका पृष्ठ 37, 19. वसुनन्दि श्रावकाचार, 209 20. धर्ममहिंसारूपं संशृण्वन्तोऽपि ये परित्यक्तम्।
स्थावरहिंसामसहास्त्रसहिंसांतेऽपि मुञ्चन्तु।। -धर्मरत्नाकर, 924
(पुरुषार्थ सिहयुणय, 76) 21. बन्धवषच्छेदातिरोपणानपाननिरोधाः। -तत्त्वार्थसूत्र 7/25 22. वाह.मनोगप्तीर्यादाननिक्षेपणसमित्यालोकितपानभोजनानि च पञ्च 1 -वही 714 23. द्रष्टव्य-उपासकाध्ययन, द्वितीय आश्वास