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अनेकान्त/55/2
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मर-नृपति-यति-ज्ञाति-नृ स्थविरा ध-मातृ-पितृषु सदा।। (47 वही, पृ. 254, वेणइयवादीण छत्तीसा दाणामपाणामादिप्रव्रज्या।, (48) अगसुत्ताणि 2 (भगवई) 3/34, (49) वही, 3/102. तए ण तस्स पुरणस्स गाहावइस्स अण्णया कयाइ सयमेव चउप्पुडयं दारुमय पडिग्गहग गहाय मुडे भवित्ता दाणामाए पव्वज्जाए पव्वइत्तए।, (50) सूत्रकृतागवृत्ति, पृ 213, इदानी विनयो विधेयः।, (51) ज्ञाताधर्मकथा, 1/5/59, तए ण थावच्चापत्ते .... सुदंसणं एव वयासी-सुदंसणा। विणयमूलए धम्मे पण्णत्ते।, (52) अभिधम्मपिटके धम्मसगणि (मपा भिक्ष जगदीश काश्यप, नालन्दा, 1960) Y 277, तत्थ कतमो सीलब्बतपरामासो? (53) सूयगडो, 1/12 के टिप्पण, पृ 499, (54) षड्दर्शनसमुच्चय, पृ 29, वशिष्ठपाराशरवाल्मीकिवयासेलापुत्रसत्यदतप्रभृतयः। (55) वही, (कर्मकाण्ड) गाथा 877 से 888, (56) वही, गाथा 877, अस्थि सदा परदो वि य णिच्चाणिच्चत्तणेण य णवत्था।, कालीसरप्पणियदिमहावेहि य तेहि भगा हु।। (57) वही, गाथा 878, (58) गोम्मटमार 2, गाथा 876, (59) वही, गाथा 888. (60) सूयगडो, 1/6/27 (61) सूयगडी, 1/12/1-22, (62) श्रमण प्रतिक्रमण, प 32, अकिरिय परियाणाभि किरिय उवसंपज्जामि। (63) दसवेआलिय, 4/10, (64) तत्त्वार्थसूत्र, 1/1, "सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणिमोक्षमार्ग:" (65) अगसुत्ताणि 2 (भगवई) 30/1, (66) भगवती वृत्ति, पृ 944, समवसन्ति नानापरिणामा जीवा. कर्थाचतुल्यतया येषु मतेषु तानि समवसरणानि।
समवमृतयो वाऽन्योन्यभित्रेषु क्रियावादादि मतेषु कर्थाचतुल्यत्वेन कचिद् केचित् वादिनामवतारा: समवसरणानि। (67) भगवतीवृनी, पृ 944, एत च सर्वेऽप्यन्यत्र यद्यपि मिथ्यादृष्टयाऽभिहितास्तथाऽपीहाद्या. सम्यग्दृष्टयों ग्राह्या, सम्यगस्तित्ववादिनामेव तेषा समाश्रयणात्।, (68) अगसुत्ताणि 2 ( भगवई) 30/4, (69) वही, 30/30 (70) वही, 3076, (71) सृयगडो, 1/12/20-22, (72) सूत्रकृताग नियुक्ति, गाथा 121 (73) सूत्रकृताग चूर्णि, 253, तिण्णि तिसट्ठा पावादियसयाणि णिग्गथं मातृण मिच्छादिट्ठिणो त्ति (74) भगवती, वृत्ति पत्र 944. (75) तत्त्वार्थ वार्तिक, 8// (76) गोम्मटमार (कर्मकाण्ड) गाथा 889, मच्छइदिलिहि विप्पियाणि तेपट्ठिजुत्ताणि मयाणि तिष्णि।
पाडिणं वाउलकारणाणि अण्णाणि चिनाणि हरति ताणि।।
निदेशक-महादेवलाल सरावगी अनेकान्तशोधपीठ
जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय)
लाडनूं (राज.)