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________________ 64 अनेकान्त / 55/2 ग्रहण है। दार्शनिक परम्परा के ग्रन्थों में तो इनका विवेचन एकान्तवाद के रूप में किया गया है। 75 गोम्मटसार ने इन 363 मतों को स्वच्छंद दृष्टि वालों के द्वारा परिकल्पित माना है।" इससे स्पष्ट हो जाता है कि उत्तरवर्ती दार्शनिक जैन दर्शन का समाहार प्रस्तुत क्रियावाद में करने के पक्ष में नहीं है। सन्दर्भ (1) (क) सूयगडो, 1/1 अध्ययन, 12वां, सूयगडो 2/1, (ख) सामञ्ञफलसुत्त ( दीघनिकाय) (2). श्वेताश्वतर उपनिषत् 1/2, 6 / 1, (3) मैत्रायणी उपनिषत्, 6 / 14, 15, (4) षट्खंडागम, प्रथम खंड, धवला पृ. 108, (5) सूयगडो 1, भूमिका पृ. 22, (6) समवाओ, पइण्णग समवाओ, सूत्र 90, (7) सूत्रकृतांग निर्युक्ति, गा. 1190, असितिसयं किरियाणं अक्किरियाण च होति चुलसीति अण्णाणिय सतट्ठी वेणइयाणं च बत्तीसा।। (8) गोम्मटसार 2, (कर्मकाण्ड) गा. 877-888, पृ. 1238-1243, (9) अंगसुत्ताणि 2 (भगवई) 30/1, (10) सूयगडो, 1 / 12/1, ( 11 ) सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ. 256, ( 12 ) सूत्रकृतांगनिर्युक्ति, गा. 118, अस्थि त्ति किरियवादी वंदति, नत्थि त्ति अकिरियवादी य। अण्णाणी अण्णाणं, विणइत्ता वेणइयवादी । ।, (13) दशाश्रुतस्कन्ध, दशा 6 सूत्र 7, ( 14 ) सूयगडो, 1/12/20, 21, (15) आयारो, 1/5, से आयावाई लोगावाई, कम्मावाई, किरियावाई ।, (16) सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ. 256, किरियावादीणं अत्थि जीवो, अत्थित्तें सति केसिंचि श्यामाकतन्दुलमात्रः केसिंचि असव्वगतो हिययाधिट्ठाणो....., ( 17 ) स्थानांगवृत्ति, पृ. 179, क्रिया जीवाजीवादिरर्थोऽस्तीत्येवं रूपां वदन्तीति क्रियावादिनः आस्तिका इत्यर्थ: ।, (18) (क) तत्त्वार्थवार्तिक, 8/1 (ख) षड्दर्शनसमुच्चय, पृ. 13, (19) भगवतीवृत्ति, पत्र 944, अन्ये त्वाहु-क्रियावादिनो ये ब्रुवते क्रियाप्रधानं किं ज्ञानेन ।, (20) Jacobi, Herman, Jaina Sutras, Part II, 1980 Introduction P XXv. a Kriyavada system, (21) Sikdr, J. C, Studies in Bhagawati sutra (मुज्जफरपुर, 1964) PP 449-450 The Kriyavadins may be identified with the followers of the Nyaya and vaisesika systems along with the Sramana Nirgrantha (22) सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ. 254, सांख्यवैशेषिका ईश्वरकारणादि अकिरियवादी । (23) ठाणं, 8/22 का टिप्पण, (24) भगवती वृत्ति, पत्र 944, अन्ये त्वाहुः- अक्रियावादिनो ये ब्रुवते किं क्रियया चित्तशुद्धिरेव कार्या, ते च बौद्धा इति ।, (25) सूयगडो, 1 / 1 /51, (26) सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ. 256, ...... सुण्णवादि.........अकिरियावादिणो।, (27) सूयगडंगसुतं, (मुनि जम्बूविजय, बम्बई 1978) प्रस्तावना, पृ. 10 ( टिप्पण संख्या 3), (28) षड्दर्शन समुच्चय, पृ. 21, ( 29 ) सूत्रकृतांग नियुक्ति, गा. 118, नत्थि त्ति अकिरियवादी या, (30) दशाश्रुतस्कन्ध, दशा 6, सूत्र 6, (31) वही, सूत्र 6, (32) स्थानांगवृत्ति, पृ. 179, अक्रियावादिनो नास्तिका इत्यर्थ: ।, (33) ठाणं, 8/22, (34) न्योपदेश, श्लोक 126, (35) अन्ययोगव्यवच्छेदिका, श्लोक 4, (36) वही, शलोक 29, (37) सांख्यकारिका 9, ( 38 ) सूयगडो (प्रथम) टिप्पण, पृ. 831-33, (39) सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ. 254, सांख्या वैशेषिका ईश्वरकारणादि अकिरियावादी । (40) वही, पृ. 256, पंच महाभूतिया चतुब्भूतिया खंधमेत्तिया सुण्णवादिणो लोगाइतिगा य वादि अकिरियावादिणो । (41) सूत्रकृतांगवृत्ति, पत्र 35, ( 42 ) सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ. 255-256, (43) वही, पृ. 256, तेसु मिगचारियादयो अडवीए पुप्फ-फलभक्खिणो इच्चादि अण्णाणिया ।, ( 44 ) तत्त्वार्थवार्तिक, 8 / 1, (45) सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ. 206, वेणइयवादिणो भगति-ण कस्स वि पासंडिणोऽस्स गिहत्थस्स वा गिंदा कायव्वा सव्वस्सेव विणीयविणयेण होयव्वं (46) वही, पृ. 255, वैनयिकमतं- विनयश्चेतो- वाक्काय-दानतः कार्यः । vaiseshika, proper, which is
SR No.538055
Book TitleAnekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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