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________________ अनेकान्त/54-2 सहित जो वस्तु का यथार्थ स्वरूप है, वही धर्म कहलाता है, जो ध्यान धर्म से सहित होता है, वह धर्म्य ध्यान कहलाता है। इन ध्यान के माध्यम से तत्वों का अन्वेषण किया जाता है। चित्त की वृत्तियाँ शांत होती हैं, जिन्हें चित्त की वृत्तियां कहा जाता है। वस्तुत: वे आत्मा की ही वृत्तियां हैं। रागी द्वेषी आत्मा ही मन के द्वारा राग द्वेष रूप व्यापारों में प्रवृत्त होता है। राग द्वेष पर नियंत्रण के बिना चित्त की चंचलता पर नियंत्रण नहीं हो सकता। चित्त की चंचलता नित्रित हुए बिना आत्मा का साक्षात्कार नहीं किया जा सकता है। चित्त की चंचलता को नियंत्रित करने वाला साधन ही आत्मदर्शन करता है जैसा कि पूज्यपाद कहते हैं रागद्वेषादिकल्लोलैरलोलं यन्मनोजलम्। स पश्यत्यात्मनस्तत्त्वं तत्रत्वं नेतरो जनः।। जिसका मन रूपी जल रागद्वेष आदि लहरों से चंचल नहीं होता वह आत्मा के यथार्थ स्वरूप को देखता है। अन्य जन उस आत्मतत्त्व का दर्शन नहीं कर सकते। आत्मदर्शन का मुख्य साधन धर्म्य और शक्ल ध्यान ही हैं। इनका ध्याता उत्तम संहननधारी होता है। जैसा कि आदिपुराण में कहा है-जो वज्रवृषभनाराच संहनन नामक अतिशय बलवान् शरीर का धारक है, जो तपश्चरण करने में अत्यन्त शूरवीर है, जिसने अनेक शास्त्रों का अच्छी तरह से अभ्यास किया है, जिसने आर्तरौद्र नामक खोटे ध्यानों को दूर हटा दिया है, जो अशुभ लेश्याओं से बचता रहता है, जो लेश्याओं की विशुद्धता का अवलम्बन का प्रमाद रहित अवस्था का चिन्तवन करता है, अतिशय बुद्धिमान् है, योगी है, जो बुद्धिबल से सहित है। शास्त्रों के अर्थ का अवलम्बन लेने वाला है, जो धीर-वीर है और जिसने समस्त परीषहों को सह लिया है ऐसा उत्तम मुनि ध्याता है।" ___ आदिपुराण के अनुसार अप्रमत्त मुनि को धर्म्यध्यान का स्वामी बताया गया है जिसका समर्थन आचार्य देवसेन के तत्त्वसार, आचार्य रामसेन के तत्त्वानुशासन, आचार्य नागसेन के तत्वानुशासन एवं आचार्य शुभचन्द्र के SoSaxxxssasarezarazarazzar
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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