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मोमा प्र ( सस्ती ग्रन्थमाला प्रकाशन दिल्ली) अधि. 7 पृष्ठ 341, 308 तथा 364, धवला 8/83, रतनचन्द पत्रावली 18 180, मुख्तार ग्रन्थ पृ. 842, 1110 आदि, जयधवल 12/285, जैन सं. 11 12 58 पृ 5, जैन गजट 8.1.70 पृ. 7, फूलचन्द सि.शा पत्र 20.1.80 ई, धवल 6/236, बा. अणु. 67 का अ. 104, लब्धिसार ( राजचन्द्र ) पृ 74, क. पा. सूत्रा पृष्ठ 628-629 सर्वार्थसिद्धि पृ. 352 ( ज्ञानपीठ) III पेरा आदि। (इन सब प्रमाणो से यह भी सिद्ध होता है कि चतुर्थ गुणस्थान मे अविपाक निर्जरा नहीं होती । गुणश्रेणी निर्जरा अविपाक निर्जरा ही है ।)
अनेकान्त / 54-2
न ह्यप्राप्तकालस्य
( रा वा
मरणाभाव., खड्गप्रहारादिभि. मरणस्य दर्शनात् । 2/53 भाग 5 पृष्ठ 261-62 विद्यानन्दि स्वामी)
अत्यन्त निष्काम पुण्य अर्थात् निदान रहित पुण्य यानि भावी भोगों की इच्छा रहित पुण्यकर्म । करणानुयोग के अनन्त जीवो मे से एक जीव ही संचित कर सम्यग्दृष्टि ही संचित कर पाता है ।
(1) निर्निदान-पुण्यं पारम्पर्येण मोक्ष--कारणं
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है ।
अर्थ-निदान रहित पुण्य परम्परा से मोक्ष का कारण ( भावपाहुड 81 टीका) (11) एतत्पूजादिलक्षणं पुण्यं... मोक्षकारणं निर्ग्रन्थलिगेन ।
साक्षाद् भोगकारणं..
तृतीयादिभवे
अर्थ-मोक्षार्थी द्वारा किया गया पूजा आदि पुण्य साक्षात् तो स्वर्गादि के भोग का कारण है। तीसरे आदि भव मे निर्ग्रन्थलग द्वारा मोक्ष का कारण है । (भा.पा. 82 टीका)
अनुसार ऐसा पुण्य पाता है। ऐसा पुण्य
(III) परम्परया निर्वाणकारणस्य तीर्थंकरप्रकृत्यादि - पुण्यपदार्थस्यापि कर्त्ता
भवति ।
अर्थ- परम्परानिर्वाण के कारणभूत तीर्थंकर आदि पुण्य कर्म को सम्यग्दृष्टि बांधता है। ससा पृ 1861
(IV) व्रतदानादिकं सम्यक्त्वसहितं पुनः परम्परया मुक्तिकारणं । ( स.सा 153 पीठिका) ।
अर्थ- सम्यक्त्व सहित व्रतदानादिक परम्परा से मुक्ति का कारण है । (v) तम्हा सम्मादिट्ठीपुण्णं मोक्खस्स कारणं हवई ।
इय पाउण गिहत्थो पुण्णं चायरउ जत्तेण । ।
( भावसंग्रह गा. 404 तथा 424 ) COOCOOOO