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________________ अनेकान्त/54-1 63 सभ्य होने में कुछ समय लगा क्योंकि पल्लव शब्द का अर्थ तमिल भाषा में डाक होता है।" प्रसिद्ध जैनचार्य समन्तभद्र अपने को कांची का निवासी बताते थे। इस वंश का राजा दूसरी सदी में स्थापित माना जाता है। इस वंश के कुछ राजा जैन थे। छटी सदी में इस वंश के महेन्द्रवर्मन प्रथम (600-630) ने अनेक जैन मंदिरों तथा गुफाओं का निर्माण करवाया था। प्रसिद्ध सितन्नवासल जैन गुफा का निर्माण भी उसी ने करवाया था किन्तु वह शैव बन गया और उसने जैनधर्म को बहुत अधिक हानि पहुंचाई। चोल वंश को सम्मिलित करते हुए भी श्री शर्मा ने लिखा है कि "तमिल देश में ईसा की आरंभिक सदियों में जो राज्य स्थापित हुए उनका विकास ब्राह्मण संस्कृति के प्रभाव से हुआ...राजा वैदिक यज्ञ करते थे। वेदानुयायी ब्राह्मण लोग शास्त्रार्थ करते थे।" यहां यह सूचना ही पर्याप्त जान पड़ती है कि चोल राजा कीलिकवर्मन का पुत्र शांतिवर्मन (120--185 A.D ) जैन मुनि हो गया था और वह जैन परम्परा में समंतभद्र के नाम से आदरणीय और पूज्य है। स्वामी समंतभद्र ने भारत के अनेक स्थानों पर शास्त्रार्थ में विजय पाई थी। वे अपने आपको वादी, वाग्मी आदि कहते थे। चौथी सदी में जब चोल राजाओं का प्रभाव बढ़ा, तब भी वे जैनधर्म के प्रति सहिष्णु रहे। पांड्य वंश का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। श्री शर्मा ने यह मत व्यक्त किया है कि "पांड्य राजाओं को रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार में लाभ होता था और उन्होंने रोमन सम्राट ऑगस्टस के दरबार में राजदूत भेजे। ब्राह्मणों का अच्छा स्थान था।" पृ. 172 किन्तु डॉ. ज्योतिप्रसाद का कथन है, "ई. पूर्व 25 में तत्कालीन पांड्य नरेश ने एक जैन श्रमणाचार्य को सुदूर रोम के सम्राट् ऑगस्टस के दरबार में अपना राजदूत बनाकर भेजा था। भड़ौच के बंदरगाह से जलपोत द्वारा यह यात्रा प्रारंभ हुई थी। उक्त मुनि ने अपना अंत निकट जान कर रोम नगर में सल्लेखना द्वारा देह त्याग दी थी और वहां उनकी समाधि बनी थी।" पृ. 246 चेर राजवंश का नाम अशोक के शिलालेख में भी है। यह वंश आरंभ से ही जैन धर्म का अनुयायी प्रतीत होता है। श्री शर्मा ने यह लिखा है कि "चेरों ने चोल नरेश कारिकल के पिता का वध कर दिया किन्तु चेर नरेश को अपनी जान गंवानी पड़ी...कहा जाता है कि चेर राजा ने पीठ
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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