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________________ 48 अनेकान्त/54-1 000000000000SamacaracanaGORORSCOOODS सन्दर्भ 1. पयडी सील सहावो जीवं गाणं अणाइ संबधो। कणयो बलं मलं वा ताणथित्तं सयं सिद्ध।। गो-कर्म-2 2. देहोदयेण सहिओ जीवो आहरदि कम्म णोकम्म पडिसमयं सव्वंग तत्ताय सपिंड ओव्व जलं।। गो-कर्म-3 3. कम्मत्तणेण एक्कं दव्वं भावोत्ति होदि कुविहंतु। पोग्गल पिंडो दव्वं तस्सत्ती भावकम्मं दु।। गो-कर्म-6 4. महाबन्ध 5. आवरण मोहविग्घं घादी जीव गुणघादणत्तादो। __ आउगणामं गोदं वेयणियं तह अघादित्ति।। गो-कर्म-गा-8 6. "जीवगुण विणासयत्तत विरहादो "धवल पु. 6/2 पृष्ठ 63 7. "घादिव वेयणीयं मोहस्स वलेण घाददे जीवं" गो.क.गां. 19 8. शेषघातित्रितयविनाशाविनाभाविनो। भ्रष्टबीजवन्निशक्ति कृताघातिकर्मणी।। धावल पु. 1 पृ. 44 9. पयडि-ट्ठिदि अणुभाग प्पदेस भेदा दु चदुविधो बंधो। जोगापयडि-पदेसा ठिदि अणुभागा कसायदो होति।।231।। जिनवाणी 10. धवल पु. 12/4 पृ. 115 11. तत्र ज्ञान दर्शनावरण मोहान्तरायाख्या घातिका। राज.वा.पृ. 584 12. घातिकाश्चापि द्विविधा सर्वघातिका देशघातिकाश्च।। रा.वा.पृ. 584 13. णाणावरण चउक्कं तिदंसणं सम्मगं च संजलणं। णव णो कसाय विग्घं छव्वीसा देसघादीओ।। गो.क.गा. 40 14. महाबन्ध भाग 2 15. घाति कर्मणामनुभागो लता दार्वस्थि शैलसमानचतुः स्थानम्।। कर्म प्रकृति 545. 16. सत्ती य लदा दारु अट्ठी से लोवमाहु घादीणं। दारु अतिमभागोत्ति देसघादी तदो सव्व।। गो.कर्म.गा. 180 17. देसोत्ति हवे सम्म तत्तो दारु अणतिमे मिस्स। सेसा अणंतभागा अत्थिसिला फड्ढया मिच्छे।। गो.कर्म 181 18. गोम्मटसार कर्मकाण्ड 182 निदेशक-दिगम्बर जैन मुनि विद्यानंद शोधपीठ, बड़ौत
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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