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________________ अनेकान्त/54-1 43 सुभग दुर्भग आदि जीव पर्यायों को उत्पन्न करना है, इनमें जीव के गुणों का विनाश करने की शक्ति नहीं होती है। वेदनीय कर्म रति और अरति मोहनीय कर्म के साथ ही जीव के गुणों को घातता है। इस कारण वेदनीय को मोहनीय से पहिले घातियाकर्मों के साथ रखा गया है। हां, वह स्वयं तो अघातिया ही है, किन्तु मोहनीय कर्म के संयोग से घातियावत् कार्य करता है। ___ अन्तराय कर्म के सम्बन्ध में भी चिन्तन की आवश्यकता है-कि यह घातियाकर्म अनुभाग के अन्तर्गत है, फिर इसे अघातियाकर्मो के अन्त में क्यों रखा गया है? इसके सम्बन्ध में आचार्य श्री वीरसेन स्वामी ने यह समाधान दिया है कि नाम गोत्र और वेदनीय इन तीन कर्म के निमित्त से ही इसका व्यापार है। यही कारण है कि अघातिया कर्मो के अन्त में अन्तरायकर्म को कहा गया है। अन्तरायकर्म का नाश हो जाने पर अघातियाकर्म भुने हुए बीज के समान नि:शक्त हो जाते हैं। इस प्रकार मूल कर्म प्रकृतियों की गणना एवं कंचन के औचित्य को समझकर एवं घातिकर्म तथा अघातिकर्म की व्यवस्था जानकर बन्ध की अपेक्षा से कर्म के भेदों पर विचार किया जा रहा है। बन्धापेक्षा से कर्म प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश रूप चार प्रकार का है। इनमें से प्रकृति और प्रदेश योग-मन, वचन, काय की प्रवृत्ति से होते हैं तथा स्थिति और अनुभाग क्रोधादि कषायों के द्वारा होते हैं। बन्ध प्रक्रिया में अनुभाग का विशेष स्थान है। विविध कर्मो की फलदान शक्ति अनुभव या अनुभाग है। तत्त्वार्थसूत्रकार "विपाकोऽनुभव:" अनुभागकर्म के फल को कहते हैं। अनुभाग बन्ध कपायों की तीव्रता, मन्दता और द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव, भाव के अनुसार अनेक प्रकार का होता है। जीव के भावों के अनुसार ही फलदान शक्ति में तरतमता होती है। जैसे उबलते हुए तेल की एक बूंद शरीर को जला डालती है परन्तु कम गर्म मन भर तेल भी शरीर को नहीं जलाता है, उसी प्रकार अधिक अनुभाग युक्त थोड़े से कर्म जीव के गुणों का घात करने में समर्थ होते हैं, परन्तु अल्प अनुभाग युक्त अधिक कर्म भी जीव के गुणों का घात करने में समर्थ नहीं होते हैं। कर्मबन्ध में अनुभाग की प्रधानता होती है। कर्म प्रदेशों के अधिक होने पर यह आवश्यक नहीं कि कर्म के अनुभाग में भी वृद्धि हो क्योंकि अनुभाग बन्ध कषाय से होता है।
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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