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अनेकान्त/54-1
यदि कुल सामान्य भाषाई प्रयोगों को देखा जाए तो वे प्रमुख रूप से दो रूपों में होते हैं; एक-भाषा के किसी भी वक्ता या बोलने वाले की भाषा के प्रयोग और दूसरे-रचनाकार की भाषा के प्रयोग। चूँकि आदिपुराण की भाषा सामान्य भाषा-प्रयोक्ता की भाषा भर नहीं है, वह है रचनाकार की भापा भी, इसीलिए रचनाकार की भाषा की प्रकृति को समझते हुए ही आदिपुराण को विश्लेपित किया जाना अपेक्षित है। मैं भाषा की संगठन प्रक्रिया या निर्माण-प्रक्रिया में दो प्रक्रियाओं को निहित मानता हूँ। एक भाषा की वह सामान्य गठन प्रक्रिया जिससे सामान्य भाषा-प्रयोक्ता की भाषा जन्म लेती है, इसे प्रजनित या पश्चिमी शब्दावली में Generation की भाषा कह सकते हैं और इसकी प्रक्रिया को Generation की प्रक्रिया अर्थात् प्रजनन प्रक्रिया क्योंकि इसमें भाषा के घटक अर्थात् भाषा की प्रत्येक इकाई व्याकरण के नियमों से पूरी तरह बँधकर चलती है, इसीलिए इसमें विचार से भापिकाच्चार की प्रक्रिया पूरी तरह निश्चित होती है, इसके चरण निश्चित होते हैं। जबकि रचनाकार की भाषा व्याकरण के नियम में पूरी तरह बँधी नहीं होती, वह अनेकत्र व्याकरण के नियमों को लाँघकर रची जाती है पर व्याकरण के नियमो को पूरी तरह नकारकर नहीं। यदि ऐसा न हो तो रचनाकार अपने पाठ में नये अर्थ की सर्जना नहीं कर सकता और किसी भी रचना का सबसे बड़ा मापक यह होता है कि वह जितनी बार पढ़ी जाए, उतनी बार नये-नये रमणीक अर्थ की प्रतीति कराये। जो रचना इस नये रमणीय अर्थ की प्रतीति कराने में जितनी सबल होती है वह रचना उतनी बड़ी होती है। इसलिए मैं मानता हूँ कि रचनाकार की भाषा सृजन/सर्जन की भाषा होती है और इसीलिए वह प्रजनन प्रक्रिया के साथ-साथ सृजन/मर्जन पक्रिया से निर्मित होती है। रचनाकार कई बार बहुत जगहों पर व्याकरण + मा से बँधा रहता है पर बहुत जगहों पर व्याकरण के नियमों को छोड़कर चलता है। वहीं अनेकत्र सामान्य भाषाई व्याकरण के नियमों को तोडकर काव्यभापाई व्याकरण की रचना करता है। आदिपुराण की भाषा इसी तरह की भापा- सी लगती है।
काव्यभापाई व्याकरण का पहला आधार है छंदोबद्धता और आदिपुराण की भाषा छदोबद्ध है भी। प्रश्न उठता है कि जहाँ कोई विषय छंदों में निबद्ध है तो क्या उस विषय को पुरस्सर करने वाली रचना काव्य C&C IS 2020 2021 2022 20282s2cecgc30303