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________________ 70 अनेकान्त /54/3-4 पाचन के लिए सूर्य की किरणों का विशेष महत्त्व है। स्वरयोग के परम्परागत ग्रन्थों में सूर्यनाड़ी में श्वास-प्रश्वास के प्रवाहित रहने पर ही भोजन लेने की व्यवस्था सूर्य से पाचन का सम्बन्ध प्रमाणित करती है। पद्मनन्दि के अनुसार प्रत्येक गृहस्थ को आठ मूलव्रतों (गुणों), अहिंसा आदि पांच अणुव्रतों, शील आदि तीन गुणव्रतों और चार शिक्षाव्रतों के साथ रात्रिभोजन- निषेध का सम्पूर्ण शक्ति से पालन करना चाहिए। ऐसा करने से ही विविध पुण्यों का परिणाम श्रावक को मिल पाता है।' रात्रिभोजन निषेध का कारण बताते हुए श्रावकाचार सारोद्धार के लेखक पद्मनन्दि मुनि ने स्वीकार किया है कि सूर्य तेजोमय है, उसकी किरणें निरन्तर भौतिक और अभौतिक जगत् को पवित्र करती रहती हैं, इसलिए भोजन ही नहीं, अपितु समस्त शुभ कर्मों का सम्पादन सूर्य की किरणों के प्रसार के समय ही करना चाहिए।' इस तथ्य को ही और अधिक स्पष्ट करते हुए कुन्दकुन्दाचार्य ने कहा है कि रात्रि में स्नान, दान, देवपूजन, भोजन, खदिर अथवा ताम्बूल का प्रयोग नहीं करना चाहिए ।" इतना ही नहीं, बुद्धिमान् लोग तो किसी भी प्रकार के शुभकर्म दिन- समाप्ति के बाद नहीं किया करते। रात्रि तो वस्तुतः दोष-निलय है।' सम्भवत: इसी कारण रात्रि को 'दोषा' नाम से भी स्मरण किया जाता है।" जैन परम्परा में यह भी माना गया है कि यति जनों के साथ संसर्ग अथवा सत्संग तथा गुरुदेव पूजन भी रात्रि में नहीं करना चाहिए। ऐसी स्थिति में रात्रि में भोजन ग्रहण तो संयम का विनाशक ही होगा। रात्रि में भोजन का निषेध अथवा शुभकार्यों के निष्पादन का निषेध इसलिए भी उचित प्रतीत होता है कि सूर्य के अभाव में अनेक सूक्ष्म जीव-जन्तु, जो अन्धकार में ही विचरण करते हैं, कि हिंसा अथवा भोजन के साथ उनका भक्षण भी सम्भावित बना रहता है।" एक स्थान पर कुन्दकुन्दाचार्य ने संकेत किया है कि रात्रि में सूर्यकिरणों का संचार न होने पर नभोमंडल में प्रेतगण संचरण करते हैं। सूक्ष्म जीव-जन्तु उस समय ही विहार करते हैं। अतः रात्रि का भोजन विविध रोगों को उत्पन्न करने वाला हो सकता है। इस काल में भोजन ही नहीं, सामान्य जल का पीना भी हानिकर होता है।" यही कारण है कि मुनिजनों ने दिन में भोजन करने और रात्रि में विश्राम करने का निर्देश किया है। 12 10
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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