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________________ 62 अनेकान्त/54/3-4 हुआ है। श्वेताम्बर सम्प्रदाय में आठ प्रातिहार्य स्वीकार किये गये हैं, फिर इन चार प्रातिहार्यों वाले श्लोकों को स्वीकार क्यों नहीं किया गया यह विचारणीय श्वेताम्बर स्थानकवासी कविवर 'मुनि अमरचन्द जी' ने पूरे 48 श्लोक मानकर ही भक्तामर का हिन्दी पद्यानुवाद किया है। इधर दिगम्बर सम्प्रदाय ने चार नये पद्य जोड़कर इनकी संख्या 52 गढ़ ली है। 'अनेकान्त' वर्ष 2 किरण-1 के अनुसार बाद में जोड़े गये चार पद्य निम्न 'नातः परः परमवचोभिधेयो लोकत्रयेऽपि सकलार्थविदस्ति सार्वः। उच्चैरितीव भवतः परिघोषयन्त स्तेदुर्गभीरसुरदुन्दुभयः सभायाम्॥1॥ वृष्टिर्दिवः सुमनसां परितः परात् प्रीतिप्रदा सुमनसां च मधुव्रतानाम्। राजीवसा सुमनसा सुकुमारसारा सामोदसम्पदमदाग्जिन ते सुदृश्यः॥2॥ पूष्मामनुष्य सहसामपि कोटिसंख्या भाजां प्रभाः प्रसरमन्वहया वहन्ति। अन्तस्तयः पटलभेदयशक्तिहीनं जैनी तनुद्युतिरशेषतमोऽपि हन्ति॥3॥ देवत्वदीयसकलामल केवलाय । बोधांतिगाधनिरूप। घोषः स एव इति सज्जनतानमेते गम्भीरभारभरितं तव दिव्यघोषः।। किन्तु इन श्लोकों में भी प्रातिहार्यों का वर्णन होने से ये पुनरुक्त हैं, अतः असंगत है। लगता है कि लेखक ने बिना देखे ही, केवल यह सुनकर कि
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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