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अनेकान्त / 54-1 Cacacac
कटोरी सीधी या उलटी
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लोक शिखर तनुवात वलय महॅ संठियो धर्मद्रव्यविन गमन न जिहिं आगे कियो ।
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पूर्व न्यायमूर्ति एम. एल. जैन
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- रूपचन्द
सिद्ध जीव लोकान्त में तनुवातवलय में स्थित हैं। अष्ट करम करि नष्टअष्ट गुण पायकैं अष्टम वसुधा माहिं विराजे जायकैं
सिद्ध जीव अष्टम वसुधा में जाते हैं।
सिद्ध आत्माएं जहां रहती है क्या उसका सही नाम सिद्ध शिला है? सिद्ध शिला का आकार क्या है? पूजा में कैसा होना चाहिए उसका प्रतीक ? आचार्य विद्यासागर जी ने प्रचलित अर्द्धचन्द्रकार प्रतीक के विपरीत विचार प्रगट करके इसका आकार छत्र की भांति इस प्रकार होना तय कर दिया है। इसी सूत्र को पकड़ कर श्री रतन लाल जी बैनाड़ा ने जैन गजट 18.2.1999 पृ. 5 कालम 1-3 में बताया कि इसका प्रतीक C ही शास्त्र सम्मत है, किन्तु अब शोधादर्श 41 / 156 पर ब्र. श्री अशोक जैन ने अफसोस जाहिर किया है कि पुराना हे प्रतीक लोग छोड़ने लगे हैं। इस दुविधा की हालत में मैं भी कुछ निवेदन करना चाहता हूँ
- हीरा
1. मोक्ष शिला, सिद्ध शिला, निर्वाण शिला, इस नाम की शिला यदि कोई है, तो यह मध्य लोक की वह शिला है, जिस पर तीर्थकरों ने बैठकर या खड़े रहकर अपनी अंतिम तपस्या में लीन होकर शरीर त्याग कर मोक्ष की ओर प्रयाण किया था। इसका जिकर पुराणों में इस प्रकार है
गुणभद्र (803-895) के उत्तर पुराण सर्ग 54/269-272 में वर्णन है कि भगवान् चन्द्रप्रभ सारे आर्य देशों में तीर्थ प्रवर्तन कर सम्मेद शिखर पहुंचे और वहां