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अनेकान्त/54/3-4
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किसी से अप्रिय-कटु-कठोर शब्द न बोले और वस्तु-स्वरूप का विचार करते हुए कर्मोदय जन्म दुख और संकटों का सामना समतापूर्वक करें (पद-11)।
सुखी राज्य एवं पर्यावरण-रक्षा का आधार अहिंसा :
कवि ने पद 10 में पर्यावरण की रक्षा एवं प्रजा की सुख-शांति के सूत्र दिये हैं। अहिंसा धर्म के प्रचार-प्रसार से पर्यावरण की रक्षा और जगत के जीवों का कल्याण होगा। छहकाय के जीवों की रक्षा ही अहिंसा और पर्यावरण रक्षा है। उससे अतिवृष्टि-अनावृष्टि न होकर वर्षा समय पर होगी। रोग-महामारी-अकाल नहीं होगा। प्रजा शांतिपूर्वक रहेगी। राजा अर्थात् शासकगण धर्मनिष्ठ, अर्थात् न्याय नीति एवं सदाचार पूर्वक प्रजा की रक्षा करें। ऐसी स्थिति में सभी राष्ट्र उन्नति करेंगे।
संक्षेप में, "मेरी भावना" विश्व के जीवों के कल्याण अम्यूदय और निःश्रेयस पद की प्राप्ति की आदर्श विचार-आचार संहिता है। मेरी भावना के अनुरूप जीवन रूपांतरित हो यही कामना है।
मेरी भावना की गुणवत्ता, सार्वजनीनता एवं सर्वधर्म समभावना का अन्त:परीक्षण कर प्रज्ञा चक्षु पण्डित शिरोमणी पं. सुखलालजी संघवी ने इसकी न केवल मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की थी, अपितु गुजरात के समस्त जैन गुरुकुलों में प्रात:-सायंकालीन प्रार्थना के लिए मेरी भावना की अनुशंसा भी की थी। उन्होंने महात्मा गांधी से उसकी प्रशंसा कर वहाँ के प्रार्थना गीत के रूप में स्वीकृत करने का अनुरोध किया था। यह उल्लेखनीय है कि वैल्दी फिशर द्वारा स्थापित साक्षरता निकेतन लखनऊ, जहाँ पर उत्तर प्रदेश शासन के कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जाता है, वहाँ प्रतिदिन सर्वधर्मसभा में मेरी भावना की प्रार्थना की जाती है।
बी-369, ओ.पी.एम. कालोनी
अमलाई पेपर मिल्स जिला-शहडोल (म.प्र.)-484117