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________________ अनेकान्त/54/3-4 आत्मा का यथार्थ (भूतार्थ) ज्ञान होना ही तो मुश्किल काम है। धन कन राजसुख सबहिं सुलभ कर जान। दुर्लभ है संसार में एक जथारथ ज्ञान।। तारण स्वामी की पदावली में अनुभव मानों हिलोरे ले रहा है, छलक रहा है। समयसार में न्याय और तर्क शास्त्र का आधिक्य है और टीकाओं में तो इनका बाहुल्य है। बड़ा मुश्किल काम है आनंद सागर की अनन्तता को शब्दों में भर लेना। अब कुछ विशिष्ट बातें 1. कटारिया संस्करण में अन्य संस्करणों के मुकाबले करीब 40 गाथाएं अधि क हैं-उनका आधार ताड़पत्र है। इस कारण पहली जरूरत तो यह है कि गाथाएं व्यवस्थित हों, भाषा में एक रूपता हो तथा अधिकारों के शीर्षक सही हों। 2. कुन्दकुन्द का यह उपदेश तो हितकारी है कि आत्मा का स्वरूप, असली रूप तो (सिद्ध आत्माओं की तरह मुक्त) कर्म रहित शुद्ध रूप है। उसे वे निश्चय नय से हासिल की गई जानकारी बतलाते हैं। यह जिनवर वर्णित है। 3. साथ ही वे यह भी तो जानते थे कि उनका स्वयं का आत्मा और तमाम सिद्धेतर आत्माएं कर्मो से बंधी हुई हैं और कर्मों से छुटकारा पाना और उसके लिए उपाय करना भी जरूरी है। इसको इन उपायों की वे व्यवहार नय से हासिल की गई जानकारी बतलाते हैं और यह भी जिनवर वर्णित 4. व्यवहार व निश्चय नय दोनों ही सही हैं, भूतार्थ हैं और अध्यात्म की, मुक्ति की आवश्यकताएं हैं, सच्चाईयां हैं। यदि आत्मा को केन्द्र न बनाया जाए, यदि आत्मा पर विश्वास न हो, तो ध्यान, तपस्या के सारे उपक्रम, सारे व्यापार, सारे व्यवहार बेमानी हैं, दिगम्बर या श्वेताम्बर साधु या गृहस्थ वेष सब वृथा हो जाते हैं।
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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