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________________ 26 अनेकान्त/54/3-4 स्पष्ट है कि 2600 वर्ष पूर्व के प्राचीन गणतन्त्रों में वैशाली गणतन्त्र श्रेष्ठ तथा योग्यतम था । लिच्छवियों के कुछ अन्य गुणों ने उन्हें महान् बनाया। उनके जीवन में आत्म-संयम की भावना थी। वे लकड़ी के तख्त पर सोते थे, वे सदैव कर्तव्यनिष्ठ रहते थे। जब तक उनमें ये गुण रहे, अजातशत्रु उनका बाल बाँका भी न कर सका।" शासन-प्रणाली : लिच्छवियों के मुख्य अधिकारी थे- राजा, उपराजा, सेनापति तथा भाण्डागारिक । इनमें ही संभवतः मन्त्रिमंडल की रचना होती थी। केन्द्रीय संसद का अधिवेशन नगर के मध्य स्थित सन्थागार ( सभा - भवन) में होता था। शासन-शक्ति संसद के 7707 सदस्यों ('राजा' नाम से युक्त) में निहित थी । " संभवत: इनमें से कुछ 'राजा' उग्र थे और एक दूसरे की बात नहीं सुनते थे। इसी कारण ललितविस्तर - काव्य में ऐसे राजाओं की मानो भर्त्सना की गई है - " इन वैशालिकों में उच्च, मध्य, वृद्ध एवं ज्येष्ठ जनों के सम्मान के नियम का पालन नहीं होता। प्रत्येक स्वयं को 'राजा' समझता है। 'मैं राजा हूँ! मैं राजा हूँ!' कोई किसी का अनुयायी नहीं बनता।" इस उद्धरण से स्पष्ट है कि कुछ महत्त्वाकांक्षी सदस्य गणराजा (अध्यक्ष) बनने के इच्छुक थे । संसत्सदस्यों की इतनी बड़ी संख्या से कुछ विद्वानों का अनुमान है कि वैशाली की सत्ता कुछ कुलों (7707) में निहित थी और इसे केवल 'कुल- तन्त्र' कहा जा सकता है। इस मान्यता का आधार यह तथ्य है कि 7707, राजाओं का अभिषेक एक विशेषतया सुरक्षित सरोवर (पुष्करिणी) में होता था । " स्वर्गीय प्रो. आर. डी. भण्डारकर का निष्कर्ष था - "यह निश्चित है कि वैशाली संघ के अंगीभूत कुछ कुलों का महासंघ ही यह गणराज्य था । " श्री जायसवाल तथा श्री अल्तेकर जैसे राजशास्त्र विद इस निष्कर्ष से सहमत नहीं हैं। श्री जायसवाल ने 'हिन्दू राजशास्त्र' ( पृष्ठ 44 ) में लिखा है - " इस
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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