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________________ 24 अनेकान्त/54/3-4 पूजेस्संति तेसञ्च सोत्तब्नं मजिस्संति। --जब तक तक वे वज्जि-पूर्वजों तथा नायकों का सत्कार, सम्मान, पूजा तथा समर्थन करते रहेंगे तथा उनके वचनों को ध्यान से सुन कर मानते रहेंगे; 5. ये ते वज्जीनं वज्जिमहल्लका ते सक्करिस्सति, गुरु करिस्सन्ति मानेस्सति, पूजेस्सति, या ता कुलित्थियो कुलकुवारियों ता न आक्कस्स पसह्य वास्सेनित। -जब तक वे वज्जि-कुल की महिलाओं का सम्मान करते रहेंगे और कोई भी कुलस्त्री या कुल-कुमारी उनके द्वारा बल पूर्वक अपहृत या निरुद्ध नहीं की जायेंगी; 6. वज्जि चेतियानि इव्मंतरानि चेव बाहिरानि च तानि सक्करिस्संति, गरु करिति, मानेस्संति, पूजेस्सति, तेसञ्च दिन्नपुब्बं कतपुव्वं धाम्मिकं बलि नो परिहास्संति नो परिहापेस्सति। --जब तक वे नगर या नगर से बाहर स्थित-चैत्यों (पूजा-स्थलों) का आदर एवं सम्मान करते रहेंगे और पहले दी गई धार्मिक बलि तथा पहले किए गए धार्मिक अनुष्ठानों की अवमानना न करेंगे; 7. वज्जीनं अरहतेसु धम्मिका रक्खावरण-गुत्ति सुसंविहिता भविस्संति। जब तक वज्जियों द्वारा अरहन्तों को रक्षा, सुरक्षा एवं समर्थन प्रदान किया जायेगा; तब तक वज्जियों का पतन नहीं होगा, अपितु उत्थान होता रहेगा।" आनन्द को इस प्रकार बताने के बाद बुद्ध ने वस्सकार से कहा, "मैंने ये कल्याणकारी सात धर्म वज्जियों को वैशाली में बताये थे।" इस पर वस्सकार ने बुद्ध से कहा, 'हे गौतम! इस प्रकार मगधराज वज्जियों को युद्ध में तब तक नहीं जीत सकते, जब तक कि वह कूटनीति द्वारा उनके संगठन को न तोड़ दें।" बुद्ध ने उत्तर दिया, "तुम्हारा विचार ठीक है।" इसके बाद वह मंत्री चला गया।
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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