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________________ अनेकान्त/54/3-4 करना चाहता था। उनके अपने मंत्री वस्सकार (वर्षकार) को बुद्ध के पास भेजते हुए कहा-'हे ब्राह्मण! भगवान् बुद्ध के पास जाओ और मेरी ओर से उनके चरणों में प्रणाम करो। मेरी ओर से उनके आरोग्य तथा कुशलता के विषय में पूछ कर उनसे निवेदन करो कि वैदेही-पुत्र मगधराज अजातशत्रु ने वज्जियों पर आक्रमण का निश्चय किया है और मेरे ये शब्द कहो-"वज्जि-गण चाहे कितने शक्तिशाली हों, मैं उनका उन्मूलन करके पूर्ण विनाश कर दूंगा। इसके बाद सावधान होकर भगवान् तथागत के वचन सुनो।"14 और आकर मुझे बताओ। तथागत का वचन मिथ्या नहीं होता। अजात शत्रु के मंत्री के वचन सुनकर बुद्ध ने मंत्री को उत्तर नहीं दिया बल्कि अपने शिष्य आनन्द से कुछ प्रश्न पूछे और तब निम्नलिखित सात अपरिहानीय धर्मो (धम्म) का वर्णन किया 1. अभिण्हं सन्निपाता सन्निपाता बहुला भविस्संति। -हे आनन्द! जब तक वज्जि पूर्ण रूप से निरन्तर परिषदों के आयोजन करते रहेंगे! 2. समग्गा सन्निपातिसति समग्गा वुट्ठ-हिस्संति समग्गा संघकरणीयानि करिस्सति। -जब तक वज्जि संगठित होकर मिलते रहेंगे, संगठित होकर उन्नति करते रहेंगे तथा संगठित होकर कर्तव्य कर्म करते रहेंगे। 3. अप्पज्जत न पज्जापेस्संति, पज्जतं न समुच्छिन्दिस्संति-यथा, पज्जत्तेषु सिक्खापदेसु समादाय वत्तस्संति। -जब तक वे अप्रज्ञप्त (अस्थापित) विधाओं को स्थापित न करेंगे। स्थापित विधानों का उल्लंघन न करेंगे तथा पूर्वकाल में स्थापित प्राचीन वज्जि-विधानों का अनुसरण करते रहेंगे; 4. ये ते संघपितरो संघपरिणायका ते सक्करिस्संति गरु करिस्सति मानेस्सति
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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