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________________ अनेकान्त/54-2 अब देखिये, न तो प्रवाह की धारा को बांधना पड़ा, न ही धारा के विपरीत खड़ा होना पड़ा और यथेष्ट कार्य सम्पन्न हो गया। भाइयों! प्रवाह की धारा को बांधना संयम नहीं, अपितु प्रवाह की धारा को सही दिशा प्रदान कर देना ही संयम है। मन में सदैव भाव उत्पन्न होते रहते हैं, भावों की धारा पर सवार हो, बुद्धि को वाहनचालक बनाकर मन अकल्पनीय तीव्रता से विचरण करता है। मन के इस स्वच्छंद विचरण से आकांक्षा, लालसा एवं गृद्धता उत्पन्न होती है, जिससे पर-पदार्थो में प्रबल मोह जाग्रत होता है। विवेक के पैने अंकुश से जब मन के बुद्धि से जुड़े तंतुओं पर प्रहार होता है तब बुद्धि संयमित होती है। बुद्धि के संयमित होते ही मन की गति मंद हो जाती है। पुनः विवेक के अंकुश से दिशा पाकर मन दृष्टव्य दिशा में चलना शुरू कर देता है। सही दिशा प्राप्त होते ही दशा बदलने में देर नहीं लगती। दशा का बदलना ही संयम की पूर्णता है। इस लब्धि की प्राप्ति को सुलभ करने हेतु अपने जीवन में एक क्रमगत प्रयोग की आवश्यकता पर बल देता हूं, जिससे जीवन की दिशा अवश्य ही परिवर्तित होगी। इस जीवन का कोई भी एक दिन चयनित कर प्रात: सोकर उठने से लेकर रात्रि को शयन से पूर्व तक किये गये प्रत्येक छोटे-बड़े कार्यो की सूची उन कार्यो में लगे समय के साथ लिख लें। अब प्रयोग की सामग्री तैयार है। आपके कृत की एक दिन की यह सूची ही आपके जीवन की दिशा परिवर्तित करेगी। कैसे? सर्वप्रथम तो आने वाले दिनों में किसी भी एक दिन, जिस दिन आप अपेक्षाकृत शांत एवं प्रसन्न अनुभूत कर रहे हों, इसी सूची पर विचार एवं अध्ययन शुरू कर दें। यह क्रिया चार चरणों में पूर्णता को प्राप्त होगी। प्रथम चरण में इस सूची पर मात्र लौकिक दृष्टि से ही विचार हो पायेगा। देखिये एवं स्वयं निर्णय कीजिये कि इस सूची में कितने कार्य बिल्कुल ही अनावश्यक कारित हुए हैं जिनको किये बगैर भी आपका जीवन आराम से चल सकता था। थोड़े से चिंतन से यह स्वयं ही स्पष्ट हो जायेगा तब अपने अगले दिनों की दिनचर्या से ऐसे अनावश्यक कार्यों को क्रमशः हटाते जायें। इस चरण की पूर्णता तक आप पायेंगे कि आपके पास अपने आवश्यक कार्यों के लिए अधिक समय है। परिणति में आप अपने आवश्यक कार्य अधिक शांति, तन्मयता एवं सफलतापूर्वक निष्पादित कर पायेंगे। इससे आपका विश्वास स्वयं में दृढ़ होगा तथा मन शांत होगा।
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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