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________________ अनेकान्त/54-2 comics.comcccccccror जैसी बात है। इसमें तीव्र वेग की स्थिति में ध्वंस (पतित) हो जाने, बांध के टूट जाने की आशंका प्रबल रहती है। टूटन सदैव विध्वंस व विनाश की जन्मदात्री है जबकि शमन में विवेक को प्रमुखता प्राप्त है। विवेक = वि + वे + क वि = विशिष्ट वे = वेत्ता क = क्रिया तो विवेक से भाव स्पष्ट हुआ कि ऐसी क्रिया जो विशिष्ट वेत्ता द्वारा की जाय यानि विशिष्ट वेत्तात्मक क्रिया। सरल रूप में कहें तो विशेष ज्ञानयुक्त क्रिया। विशिष्ट ज्ञान वस्तु स्वरूप को जानने एवं उसका यथार्थ भाव ग्रहण करने से प्रकट होता है। वस्तु स्वरूप जाने एवं ग्रहण किये बिना हेय-उपादेय, कृत-अकृत की स्थिति स्पष्ट नहीं होती है। हेय को त्याग उपादेय को ग्रहण कर निजात्म स्वरूप का वेत्ता होकर की जाने वाली क्रिया ही धर्म है एवं इसी से मन एवं इन्द्रियों का शमन (शांति) होता है। ___ तो समग्र स्वरूप पर विचार करने से स्पष्ट होता है कि ऐसा कर्म/कार्य जो मन एवं इन्द्रियों का शमन कर जीवन-पर्यन्त समता भाव से किया जा सके। उदाहरणस्वरूप किसी को कहा जाय कि चमड़े की वस्तुओं का त्याग कर दो तो उसके मन में तुरन्त प्रश्न उत्पन्न होगा, क्यों? यदि यही बात उसे सीधे न कह कर समझाया जाय कि किस प्रकार हिंसा का मार्ग अपना कर चमड़े को प्राप्त किया जाता है। इस प्रक्रिया में उस शब्द वर्गणा रहित जीवों का कितनी वेदना सहन करनी पड़ती है। उसको समझाया जाये कि स्व जैसा ही जीव तत्व उन पशुओं में भी विद्यमान रहता है। ऐसी वस्तुओं के उपयोग से स्वयं में हिंसादिक विकारी भाव उत्पन्न होते हैं और परिणामस्वरूप किस प्रकार बार-बार जन्म-मरण की यंत्रणा सहने को यह जीव मजबूर होता है। इसके अलावा चमड़े से इतर वस्तुओं का उपयोग करने से भी अभीष्ट कार्य विशुद्धिपूर्वक सम्पन्न हो जाते हैं, तो फिर ऐसा व्यक्ति स्वतः ही चमड़े के उपयोग से स्वयं तो विमुख होता ही है, दूसरों को प्रेरणा भी देता है।
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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