SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त / 53-2 滿 滿滿滿滿 . . . सुदत्त कूट-17 'सुदत्त' कूट पर सिद्ध पद पाया 'धर्मनाथ' तीर्थंकर ने । इन्द्र-देवगण सब मिल पहुंचे जिनवर की पूजा करने ॥ इसी कूट से मुनिराजों ने सिद्ध पद पाया तप धर कर । पद - चिन्हों पर अर्ध चढ़ाऊं जाकर श्री सम्मेद शिखर ॥ ओं ह्रीं सुदत्त कूट से श्री धर्मनाथ जिनेन्द्रादि उनतीस कोड़ा कोड़ी उन्नीस करोड़ नौ लाख नौ हजार सात सौ पचानवे मुनि सिद्ध भये तिनके चरणों में मन-वचन-काय से वन्दन अर्घं निर्वपामीति स्वाहा । अविचल कूट-18 'अविचल ' कूट पे सिद्ध पद पाया 'सुमतिनाथ' तीर्थंकर ने । इन्द्र-देवगण सब मिल पहुंचे जिनवर की पूजा करने ॥ इसी कूट से मुनिराजों ने सिद्ध पद पाया तप धर कर । पद - चिन्हों पर अर्घ चढ़ाऊं जाकर श्री सम्मेद शिखर ॥ ओं ह्रीं अविचल कूट से श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्रादि एक कोड़ा कोड़ी चौरासी करोड़ बहत्तर लाख इक्यासी हजार सात सौ इक्यासी मुनि सिद्ध भये तिनके चरणों में मन-वचन-काय से वन्दन अर्घं निर्वपामीति स्वाहा। (कुंदप्रभु) शांतिनाथ कूट-19 'शांति' कूट पर सिद्ध पद पाया 'शांतिनाथ' तीर्थंकर ने । इन्द्र - देवगण सब मिल पहुंचे जिनवर की पूजा करने ॥ इसी कूट से मुनिराजों ने सिद्ध पद पाया तप धर कर । पद - चिन्हों पर अर्घ चढ़ाऊं जाकर श्री सम्मेद शिखर ।। वन्दन अर्घं निर्वपामीति स्वाहा। 17 ओं ह्रीं शांतिनाथ कूट से श्री शांतिनाथ जिनेन्द्रादि नौ कोड़ा कोड़ी नौ लाख नौ हजार नौ सौ निन्यानवे मुनि सिद्ध भये तिनके चरणों में मन-वचन-काय से 滿滿!
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy