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________________ 16 अनेकान्त/53-2 听听听听听听听听听%() 步步听听听听听听 धवल कूट-14 धवल' कूट पर सिद्ध पद पाया 'संभव जी' तीर्थंकर ने। इन्द्र-देवगण सब मिल पहुंचे जिनवर की पूजा करने । इसी कूट से मुनिराजों ने सिद्ध पद पाया तप धर कर । पद-चिन्हों पर अर्घ चढ़ाऊ जाकर श्री सम्मेद शिखर ॥ ओं ह्रीं धवल कूट से श्री सभंव नाथ जिनेन्द्रादि नौ कोड़ा कोड़ी बहत्तर लाख बियालीस हजार पांच सौ मुनि सिद्ध भये तिनके चरणों में मन-वचन-काय से वन्दन अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। श्री वासुपूज्य भगवान का वन्दन-15 मोक्ष गए सम्मेद शिखर पर काल-दोष से बीस जिनेश । कुन्द कुन्द स्वामी करते हैं बीसों को ही नमन विशेष ।। वासुपूज्य तीर्थंकर का है मुक्ति धाम मंदार शिखर । कर उनका गुणगान, चढ़ाऊँ अर्घ्य उन्हीं का सुमरन कर ॥ ओं ह्रीं चम्पापुरी के मंदार गिरि से श्री वासुपूज्य जिनेन्द्रादि एक हजार मुनि सिद्ध भये तिनके चरणों में मन-वचन-काय से वन्दन अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। आनन्द कूट-16 'आनन्द' कूट पे सिद्ध पद पाया अभिनन्दन' तीर्थंकर ने। इन्द्र-देवगण सब मिल पहुंचे जिनवर की पूजा करने । इसी कूट से मुनिराजों ने सिद्ध पद पाया तप धर कर । पद-चिन्हों पर अर्घ चढ़ाऊं जाकर श्री सम्मेद शिखर ।। ओं ह्रीं आनन्द कूट से श्री अभिनन्दन जिनेन्द्रादि बहत्तर कोड़ा कोड़ी सत्तर लाख बियालीस हजार सात सौ मुनि सिद्ध भये तिनके चरणों में मन-वचन-काय से वन्दन अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। %%%%%%%%% %% %%%%%%%%%%% %
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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